मैंने सुना है कि एक बहुत बड़ा राजमहल था । आधी रात उस राजमहल में आग लग गयी । आंख वाले लोग बाहर निकल गये । एक अँधा आदमी राजमहल में था । वह द्वार टटोलकर बाहर निकलने का मार्ग खोजने लगा । लेकिन सभी द्वार बंद थे । सिर्फ एक द्वार खुला था । बंद द्वारों के पास उसने हाथ फैलाकर खोजबीन की । और वह आगे बढ़ गया । हर बंद द्वार पर उसने श्रम किया । लेकिन द्वार बंद थे । आग बढ़ती चली गयी । और जीवन संकट में पड़ता चला गया । अंतत: वह उस द्वार के निकट पहुंचा । जो खुला था । लेकिन दुर्भाग्य कि उस द्वार पर उसके सिर पर खुजली आ गयी । वह खुजलाने लगा । और उस समय द्वार से आगे निकल गया । और फिर वह बंद द्वारों पर भटकने लगा ।
अगर आप देख रहे हों । उस आदमी को । तो मन में क्या होगा ? कैसा अभागा था कि बंद द्वार पर श्रम किया । और खुले द्वार पर भूल की । जहाँ से कि बिना श्रम के ही बाहर निकला जा सकता था ? लेकिन यह किसी राजमहल में ही घटी घटना मात्र नहीं है । जीवन के महल में भी रोज ऐसी घटना घटती है । पूरे जीवन के महल में अंधकार है । आग है । एक ही द्वार खुला है । और सब द्वार बन्द हैं । बंद द्वार के पास हम सब इतना श्रम करते हैं । जिसका कोई अनुमान नहीं । खुले द्वार के पास छोटी सी भूल होते ही चूक जाते हैं । ऐसा जन्म जन्मांतरों से चल रहा है । धन और यश द्वार हैं । वे बंद द्वार हैं । वे जीवन के बाहर नहीं ले जाते । एक ही द्वार है । जीवन के आगे लगे भवन में बाहर निकलने का । और उस द्वार का नाम ध्यान है । वह अकेला खुला द्वार है । जो जीवन की आग से बाहर ले जा सकता है ।
लेकिन वह सिर पर खुजली उठ आती है । पैर में कीड़ा काट लेता है । और कुछ हो जाता है । और आदमी चूक जाता है । फिर बंद द्वार हैं और अनंत भटकन है ।
इस कहानी से अपनी बात मैं इसलिए शुरू करना चाहता हूं । क्योंकि उस खुले द्वार के पास कोई छोटी सी चीज को चूक न जायें । और यह भी ध्यान रखें कि ध्यान के अतिरिक्त न कोई खुला द्वार कभी था । और न है । न होगा । जो भी जीवन की आग के बाहर हैं । वे उसी द्वार से गये हैं । और जो भी कभी जीवन की आग के बाहर जायेगा । वह उसी द्वार से ही जा सकता है ।
शेष सब द्वार दिखायी पड़ते हैं कि द्वार हैं । लेकिन वे बंद हैं । धन भी मालूम पड़ता है कि जीवन की आग के बाहर ले जायेगा । अन्यथा कोई पागल तो नहीं है कि धन को इकट्ठा करता रहे । लगता है कि द्वार है । दिखता भी है कि द्वार है । द्वार नहीं है । दीवार भी दिखती तो अच्छा था । क्योंकि दीवार से हम सिर फोड़ने की कोशिश नहीं करते । लेकिन बंद द्वार पर तो अधिक लोग श्रम करते हैं कि शायद खुल जाये । लेकिन धन से द्वार आज तक नहीं खुला है । कितना ही श्रम करें । वह द्वार बाहर ले जाता है । और भीतर नहीं ले आता है ।
ऐसे ही बड़े द्वार हैं । यश के । कीर्ति के । अहंकार के । पद के । प्रतिष्ठा के । वे कोई भी द्वार बाहर ले जाने वाले नहीं हैं । लेकिन जब हम उन बंद द्वारों पर खड़े हैं । उन्हें देखकर । पीछे जो उन द्वारों पर नहीं हैं । उन्हें लगता है कि शायद अब भी निकल जायेंगे । जिसके पास बहुत धन है । निर्धन को देखकर लगता है । कि शायद धनी अब निकल जायेगा । जीवन की पीड़ा से । जीवन के दु:ख से । जीवन की आग से । जीवन के अंधकार से । जो खड़े है बंद द्वार पर । वे ऐसा भाव करते हैं कि जैसे निकलने के करीब पहुंच गये ।
दो तीन बातें करना चाहूँगा । एक तो जातीय दंगे को साधारण मानना शुरू करना चाहिए । उसे जातीय दंगा मानना नहीं चाहिए । साधारण दंगा मानना चाहिए । और जो साधारण दंगे के साथ व्यवहार करते हैं । वही व्यवहार उस दंगे के साथ भी करना चाहिए । क्योंकि जातीय दंगा मानने से कठिनाइयां शुरू हो जाती हैं । इसलिए जातीय दंगा मानने की जरूरत नहीं है । जब एक लड़का एक लड़की को भगाकर ले जाता है । वह मुसलमान हो कि हिन्दू । कि लड़की हिन्दू है कि मुसलमान है । इस लड़के और लड़की के साथ वही व्यवहार किया जाना चाहिए । जो कोई लड़का किसी लड़की को भगा कर ले जाये । और हो । इसको जातीय मानने का कोई कारण नहीं है ।
जैसे चीन है । चीन में आप जातीय दंगा नहीं करवा सकते । कोई उपाय नहीं है । और कोई दंगे नहीं कर रहा । जातीय दंगे नहीं करवा सकते चीन में । उसका कारण है कि कभी कभी एक एक घर में पांच पांच रिलिजन के लोग हैं । दंगा करवाइए किससे । भड़काइएगा किसको ? बाप कंफ्यूशियस को मानता है । पत्नी । उसकी मां जो है । लाओत्से को मानती है । बेटा मुहम्मद को मानता है । कोई बुद्धिस्ट है घर में । एक लड़की है । बहू जो है वह । तो चीन में एक एक घर में कभी कभी पांच पांच धर्म के आदमी भी हैं । इसकी वजह से कंवर्शन नहीं होता । अगर लड़का हिन्दू है । और स्त्री मुसलमान है । तो पत्नी मुसलमान होना जारी नहीं रख सकती । मेरा मतलब समझे न आप ? जब एक घर में पांच धर्मों के लोग हों । तो आप अलग करवाइगा कैसे ? किसके साथ दंगा करवाइगा ? डिमार्केशन मुश्किल हो जाता है । हिन्दुस्तान में डिमार्केशन आसान है । यह हिन्दू है । यह मुसलमान है । यह साफ मामला है । मुसलमान अगर मरता है । तो मेरी न तो पत्नी मरती है । न मेरी बहन मरती है । कोई नहीं मरता है । मुसलमान मरता है ।
और हम । जो इस मुल्क में जातीय दंगों को खत्म करना चाहते हैं । इतनी ज्यादा जातीयता की बात करते हैं कि हम उसे रिकग्रीशन देना शुरू कर देते हैं । इसलिए पहली बात तो यह है कि जातीयता को राजनीति के द्वारा किसी तरह का रिकग्रीशन नहीं होना चाहिए । राज्य की नजरों में हिन्दू या मुसलमान का कोई फर्क नहीं होना चाहिए ।
लेकिन हमारा राज्य खुद गलत बातें करता है । हिन्दू कोड़ बिल बनाया हुआ है । जो कि सिर्फ हिन्दुओं पर लागू होगा । मुसलमान पर लागू नहीं होगा । यह क्या बदतमीजी की बातें हैं ? कोई भी कोड़ हो । तो पूरे नागरिकों पर लागू होना चाहिए । अगर ठीक है । तो सब पर लागू होना चाहिए । ठीक नहीं है । तो किसी पर लागू नहीं होना चाहिए । लेकिन जब आपका पूरा राज्य भी हिन्दुओं को अलग मानकर चलता है । मुसलमान को अलग मानकर चलता है । तो किस तल पर यह बात खत्म होगी ?
तो पहले तो हिन्दुस्तान की सरकार को साफतौर से तय कर लेना चाहिए कि हमारे लिए नागरिक के अतिरिक्त किसी का अस्तित्व नहीं है । और अगर ऐसा मुसलमान गुंडागिरी करता है । तो एक नागरिक गुंडागिरी कर रहा है । जो उसके साथ व्यवहार होना चाहिए । वह होगा । यह मुसलमान का सवाल नहीं है । राज्य की नजरों से हिन्दू और मुसलमान का फासला खत्म होना चाहिए । पहली बात ।
दूसरी बात कि हिन्दू मुसलिम के बीच शांति हो । हिन्दू मुस्लिम का भाईचारा तय हो । इस तरह की सब कोशिश बंद करनी चाहिए । यह कोशिश खतरनाक है । इसी कोशिश ने हिन्दुस्तान पाकिस्तान को बंटवाया । क्योंकि जितना हम जोर देते हैं कि हिन्दू मुस्लिम एक हों । उतना ही हर बार दिया गया जोर बताता है कि वे एक नहीं हैं । यह हालत वैसी है । जैसे कि कोई आदमी किसी को भूलना चाहता हो । और क्योंकि भूलना चाहता है । इसलिए भूलने के लिए हर बार याद करता है । और हर बार याद करता है । तो उसकी याद मजबूत होती चली जाती है । ओशो ।
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