जो लड़का अपनी mother को प्रेम नहीं कर सका । वह किसी स्त्री को कभी प्रेम नहीं कर पाएगा । हमेशा अड़चन खड़ी होगी । क्योंकि हर स्त्री में कहीं न कहीं छिपी मां मौजूद है । हर जगह हर स्त्री मां है । मां होना स्त्री का गहरा स्वभाव है । छोटी सी बच्ची भी पैदा होती है । तो वह मां की तरह ही पैदा होती है । इसलिए गुड्डियों को लगा लेती है । बिस्तर से और सम्हालने लगती है । घर गृहस्थी बसाने लगती है ।
मुल्ला नसरुद्दीन की wife बाहर गई थी । और छोटी लड़की ने । जिसकी age केवल 7 साल है । उस दिन भोजन की टेबल पर सारा कार्य भार सम्हाल लिया था । और बड़ी गुरु गंभीरता से 1 प्रौढ़ स्त्री का काम अदा कर रही थी । लेकिन उससे छोटा बच्चा 5 साल का । उसे यह बात न जंच रही थी । तो उसने कहा कि अच्छा मान लिया । मान लिया कि तुम मां हो । लेकिन मेरे 1 सवाल का जवाब दो कि 7 में 7 का गुणा करने से कितने होते हैं ? उस लड़की ने गंभीरता से कहा । मैं काम में उलझी हूं । तुम डैडी से पूछो ।
छोटी सी बच्ची । लेकिन हर लड़की मां पैदा होती है । और हर पुरुष अंतिम जीवन के क्षण तक भी छोटा बच्चा बना रहता है । कोई पुरुष कभी छोटे बच्चे के पार नहीं जाता । हर पुरुष की आकांक्षा स्त्री में मां को खोजने की होती है । और स्त्री की आकांक्षा पुरुष में बच्चे को खोजने की होती है । इसलिए जब कोई 1 पुरुष 1 स्त्री को गहरा प्रेम करता है । तो वह छोटे शिशु जैसा हो जाता है । और प्रेम के गहरे क्षण में स्त्री मां जैसी हो जाती है । उपनिषद के ऋषियों ने आशीर्वाद दिया है । नवविवाहित युगलों को कि तुम्हारे 10 बच्चे पैदा हों । और अंत में 11वां तुम्हारा पति तुम्हारा बेटा हो जाये । उन्होंने बड़ी ठीक बात कही है ।
लेकिन मां से अगर बच्चे को प्रेम की सीख न मिल पाई । बेशर्त प्रेम की । फिर कहां सीखेगा ? पहली पाठशाला ही चूक गई । और अगर लड़की को अपने father से प्रेम न मिल पाया । वह किसी भी पुरुष को प्रेम न कर पाएगी । कुआं पहले झरने पर ही जहरीला हो गया । और फिर जब तुम प्रेम से उलझन में पड़ते हो । तब तुम्हारे साधु संन्यासी खड़े हैं । सदा तैयार कि जब तुम उलझन में पड़ो । वे कह दें । हमने पहले ही कहा था कि बचना कामिनी कांचन से । कि स्त्री सब दुख का मूल है । वे कहेंगे । हमने पहले ही कहा था कि स्त्री नरक की खान है ।
तुम्हारे शास्त्र भरे पड़े हैं । स्त्रियों की निंदा से । पुरुषों की निंदा नहीं है । क्योंकि किसी स्त्री ने शास्त्र नहीं लिखा । नहीं तो इतनी ही निंदा पुरुषों की होती । क्योंकि स्त्री भी तो उतने ही hell में जी रही है । जितने नरक में तुम जी रहे हो । लेकिन चूंकि लिखने वाले सब पुरुष थे । पक्षपात था । स्त्रियों की निंदा है । किसी तुम्हारे संत पुरुषों ने नहीं कहा कि पुरुष नरक की खान । स्त्रियों के लिए । तो वह भी नरक की खान है । अगर स्त्रियां पुरुष के लिए नरक की खान हैं । नरक दोनों साथ साथ जाते हैं । हाथ में हाथ । अकेला पुरुष तो जाता नहीं । अकेली स्त्री तो जाती नहीं । लेकिन चूंकि स्त्रियों ने कोई शास्त्र नहीं लिखा । स्त्रियों ने ऐसी भूल ही नहीं की । शास्त्र वगैरह लिखने की चूंकि पुरुषों ने लिखे हैं । इसलिए सभी शास्त्र पोलिटिकल हैं । उनमें राजनीति है । वे पक्षपात से भरे हैं ।
अगर तुम्हारी पत्नी किसी के साथ थोड़ी हंसकर भी बोल रही है । प्राण कंपित हो गए । यह तो पत्नी तुम्हारे कारागृह के बाहर जाने के लिए कोई झरोखा बना रही है । यह तो सेंध मालूम पड़ती है । दीवाल तोड़कर बाहर निकलने का उपाय है । तुम्हारी wife और किसी और के साथ हंसे ? तुम्हारी wife और किसी और से बात करे ? तुम्हारा पति किसी और स्त्री के सौंदर्य का गुणगान करे ? नहीं । यह असंभव है । क्योंकि यह तो प्रथम से ही खतरा है । यह तो स्वतंत्र होने की चेष्टा है । इसको पहले ही प्रेमी मार डालते हैं । ईर्ष्या का जन्म होता है ।
और ध्यान रखना । अगर तुम 1 स्त्री को प्रेम करते हो । तो वस्तुतः उस स्त्री के द्वारा तुम सभी स्त्रियों को प्रेम करते हो । वह स्त्री प्रतिनिधि है । वह प्रतीक है । उस स्त्री में तुमने स्त्रैणता को प्रेम किया है । जब तुम किसी 1 पुरुष को प्रेम करते हो । तो उस पुरुष में तुमने सारे जगत के पुरुषों को प्रेम कर लिया । जो आज मौजूद हैं । जो कभी मौजूद थे । जो कभी मौजूद होंगे । व्यक्तित्व तो ऊपर ऊपर है । भीतर तो शुद्ध ऊर्जा है । पुरुष होने की या स्त्री होने की । जब तुम 1 स्त्री के सौंदर्य का गुणगान करते हो । तब यह कैसे हो सकता है कि सौंदर्य को परखने वाली ये आंखें राह से गुजरती दूसरी स्त्री को । जब वह सुंदर हो । तो उसमें सौंदर्य न देखें ? यह कैसे हो सकता है ? यह तो असंभव है । लेकिन इस सौंदर्य के देखने में कुछ पाप नहीं है । यह कैसे हो सकता है कि जब तुमने 1 दीये में रोशनी देखी । और आह्लादित हुए । तो दूसरे दीये में रोशनी देख कर तुम आह्लादित न हो जाओ ?
लेकिन 1 स्त्री कोशिश करेगी कि तुम्हें अब सौंदर्य कहीं । और दिखाई न पड़े । और 1 पुरुष कोशिश करेगा । अब स्त्री को यह सारा संसार पुरुष से शून्य 0 हो जाए । बस मैं ही 1 पुरुष दिखाई पडूं । तब 1 बड़ी संकटपूर्ण स्थिति पैदा होती है । स्त्री कोशिश में लग जाती है । इस पुरुष को कहीं कोई सुंदर स्त्री दिखाई न पड़े । धीरे धीरे यह पुरुष अपनी संवेदनशीलता को मारने लगता है । क्योंकि संवेदनशीलता रहेगी । तो सौंदर्य दिखाई पड़ेगा । सौंदर्य का किसी ने ठेका नहीं लिया है । जहां होगा । वहां दिखाई पड़ेगा । और अगर प्रेम स्वतंत्र हो । तो हर जगह हर सौंदर्य में इस व्यक्ति को अपनी प्रेयसी दिखाई पड़ेगी । और प्रेम गहरा होगा ।
लेकिन स्त्री काटेगी । संवेदनशीलता को । पुरुष काटेगा । स्त्री की संवेदनशीलता को । दोनों 1- दूसरे की संवेदना को मार डालेंगे । और जब पुरुष को कोई भी स्त्री सुंदर नहीं दिखाई पड़ेगी । तो तुम सोचते हो । घर में जो स्त्री बैठी है । वह सुंदर दिखाई पड़ेगी ? वह सबसे ज्यादा । कुरूप स्त्री हो जाएगी । उसी के कारण सौंदर्य का बोध ही मर गया । तो तुम सोचते हो । जिस स्त्री को कोई पुरुष सुंदर दिखाई न पड़ेगा । उसे घर का पुरुष सुंदर दिखाई पड़ेगा ? जब पुरुष ही सुंदर नहीं दिखाई पड़ते । तो इस भीतर का जो पुरुषत्व है । वह भी अब आकर्षण नहीं लाता ।
तुम ऐसा ही समझो कि तुमने तय कर लिया हो कि तुम जिस स्त्री को प्रेम करते हो । बस उसके पास ही श्वास लोगे । शेष समय श्वास बंद रखोगे । और तुम्हारी स्त्री कहे कि देखो । तुम और कहीं श्वास मत लेना । तुमने खुद ही कहा है कि तुम्हारा जीवन बस तेरे लिए है । तो जब मेरे पास रहो । श्वास लेना । जब और कहीं रहो । तो श्वास बंद रखना । तब क्या होगा ? अगर तुमने यह कोशिश की । तो दुबारा जब तुम इस स्त्री के पास आओगे । तुम लाश होओगे । जिंदा आदमी नहीं । और जब तुम और कहीं श्वास न ले सकोगे । तो तुम सोचते हो । इस स्त्री के पास श्वास ले सकोगे ? तुम मुर्दा हो जाओगे ।
ऐसे प्रेम कारागृह बनता है । प्रेम बड़े आश्वासन देता है । और आश्वासनों को पूरा कर सकता है । लेकिन वे पूरे हो नहीं पाते । इसलिए हर व्यक्ति प्रेम के विषाद से भर जाता है । क्योंकि प्रेम ने बड़े सपने दिए थे । बड़े इंद्रधनुष निर्मित किए थे । सारे जगत के काव्य का वचन दिया था कि तुम्हारे ऊपर वर्षा होगी । और जब वर्षा होती है । तो तुम पाते हो कि वहां न तो कोई काव्य है । न कोई सौंदर्य । सिवाय कलह । उपद्रव । संघर्ष । क्रोध । ईर्ष्या । वैमनस्य के सिवाय कुछ भी नहीं । तुम गए थे । किसी व्यक्ति के साथ स्वतंत्रता के आकाश में उड़ने । तुम पाते हो कि पंख कट गए । तुम गए थे । स्वतंत्रता की सांस लेने । तुम पाते हो गर्दन घुट गई ।
प्रेम फांसी बन जाता है । 100 में 99 मौके पर । लेकिन प्रेम के कारण नहीं । तुम्हारे कारण । तुम्हारे धर्मगुरुओं ने कहा है । प्रेम के कारण । वहां मेरा फर्क है । और तुम्हारे धर्मगुरु । तुम्हें ज्यादा ठीक मालूम पड़ेंगे । क्योंकि जिम्मेवारी तुम्हारे ऊपर से उठा रहे हैं वे । वे कह रहे हैं । यह प्रेम का ही उपद्रव है । पहले ही कहा था कि पड़ना ही मत इस उपद्रव में । दूर ही रहना । तो तुम्हारे धर्मगुरु प्रेम की निंदा करते रहे हैं । तुम्हें भी जंचती है बात । जंचती है । इसलिए कि तुम्हारे धर्मगुरु तुम्हें दोषी नहीं ठहराते । प्रेम को दोषी ठहराते हैं । मन हमेशा राजी है । दोष कोई और पर जाए । तुम हमेशा प्रसन्न हो । मैं तुम्हें दोषी ठहराता हूं । 100% तुम्हें दोषी ठहराता हूं । प्रेम की जरा भी भूल नहीं है । और प्रेम अपने आश्वासन पूरे कर सकता था । तुमने पूरे न होने दिए । तुमने गर्दन घोंट दी । सीढ़ी ऊपर ले जा सकती थी । तुम नीचे जाने लगे । नीचे जाना आसान है । ऊपर जाना श्रम साध्य है । प्रेम साधना है । और प्रेम को कारागृह बनाना ऐसे ही है । जैसे पत्थर पहाड़ से नीचे की तरफ लुढ़क रहा हो । जमीन की कशिश ही उसे खींचे लिए जाती है ।
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