सोमवार, नवंबर 21, 2011

खुद से तो पीठ फेर लोगे लेकिन उस अल्लाह से कैसे फेरोगे


1 टेलर था । दर्जी था । यह बीमार पडा ।  करीब करीब मरने के करीब पहुंच गया था । आखिरी घड़िया गिनता था । अब मरा कि तब मरा । रात उसने 1 सपना देखा कि वह मर गया । और कब्र में दफनाया जा रहा है । बड़ा हैरान हुआ । कब्र में रंग बिरंगी बहुत सी झंडियां लगी हुई है । उसने पास खड़े 1 फ़रिश्ते से पूछा कि ये झंडियां यहाँ क्‍यों लगी है ? दर्जी था । कपड़े में उत्‍सुकता भी स्‍वभाविक थी । उसे फ़रिश्ते ने कहा । जिन जिनके तुमने कपड़े चुराए है । जितने जितने कपड़े चुराए है । उनके प्रतीक के रूप में ये झंडियां लगी है । god इससे तुम्‍हारा हिसाब करेगा । कि ये तुम्‍हारी चोरी का रहस्‍य खोल देंगी । ये झंडिया तुम्‍हारे जीवन का बहीखाता है ।
वह घबरा गया । उसने कहा - हे अल्‍लाह । रहम कर । झंडियों को कोई अंत ही न था । दूर तक झंडियां ही झंडियां लगी थी । जहां तक आंखें देख पा रही थी । और अल्‍लाह की आवाज से घबराहट में उसकी नींद खुल गई । बहुत घबरा गया । पर न जाने किस अंजान कारण के वह एकदम से ठीक हो गया ।
फिर वह दुकान पर आया । तो उसके 2 शागिर्द थे । जो उसके साथ काम करते थे । वह उन्‍हें काम सिखाता भी था । उसने उन दोनों को बुलाया । और कहा । सुनो । अब 1 बात का ध्‍यान रखना । मुझे अपने पर भरोसा नहीं है । अगर कपड़ा कीमती आ जाये । तो मैं चुराऊंगा जरूर । पुरानी आदत है समझो । और अब इस बुढ़ापे में बदलना बड़ी कठिन है । तुम 1 काम करना । तुम जब भी देखो कि मैं कोई कपड़ा चुरा रहा हूं । तुम इतना ही कह देना । उस्‍ताद जी झंन झंडी । जोर से कह देना । दोबारा भी । गुरुजी झंन झंडी । ताकि में सम्‍हल जाऊँ । शिष्‍यों ने बहुत पूछा कि - इसका क्‍या मतलब है गुरुजी । उसने कहा । वह तुम न समझ सकोगे । और इस बात में न ही उलझो । तो अच्छा हे । तुम बस इतना भर मुझे याद दिला देना । गुरुजी झंन झंडी । बस मेरा काम हो जाएगा ।  ऐसे 3 दिन बीते । दिन में कई बार शिष्‍यों को चिल्‍लाना पड़ता । उस्‍ताद जी । झंडी । वह रूक जाता ।
चौथे दिन लेकिन मुश्‍किल हो गई । 1 जज महोदय की अचकन बनने आई । बड़ा कीमती कपड़ा था । विलायती था । उस्‍ताद घबड़ाया कि अब ये चिल्‍लाते ही हैं । झंन झंडी । तो उसने जरा पीठ कर ली । शिष्‍यों की तरफ से । और कपड़ा मारने ही जा रहा था । कि शिष्‍य चिल्‍लाया - उस्‍ताद जी  झंन झंडी । दर्जी ने इसे अनसुना कर दिया । पर शिष्‍य फिर चिल्‍लाया - उस्‍ताद जी  झंन झंडी । उसने कहा - बंद करो नालायको । इस रंग के कपड़े की झंडी वहां पर थी ही नहीं । क्‍या झंन झंडी लगा रखी है । और फिर हो भी तो क्‍या फर्क पड़ता है । जहां पर इतनी झंडी लगी है । वहां 1 और सही । ऊपर ऊपर के नियम बहुत गहरे नहीं जाते । सपनों में सीखी बातें जीवन का सत्‍य नहीं बन सकती । भय के कारण कितनी देर सम्‍हलकर चलोगे । और लोभ कैसे पुण्‍य बन सकता है ?  ओशो एस धम्‍मो सनंतनो  ।
जीवन में नियम बनाना जितना आसान है । और फिर नियम तुम्हे तय करने है । तो कोई मुश्किल काम नहीं है । उतना ही कठिन होता है । उनका पालन करना । खुद से तो पीठ फेर लोगे । लेकिन उस अल्लाह से । उस god से कैसे फेरोगे । जो सबको देखता है ।

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