सोमवार, नवंबर 21, 2011

सूर्य और पृथ्वी के बीच ऐसा ही कम्युनिकेशन है



सूर्य के संबंध में कुछ बातें जाननी जरूरी हैं । सबसे पहली तो यह बात जान लेनी जरूरी है । कि वैज्ञानिक दृष्टि से सूर्य से समस्त सौर परिवार का । मंगल का । बृहस्पति का । चंद्र का । पृथ्वी का जन्म हुआ है । ये सब सूर्य के ही अंग हैं । फिर पृथ्वी पर जीवन का जन्म हुआ । पौधों से लेकर मनुष्य तक । मनुष्य पृथ्वी का अंग है । पृथ्वी सूरज का अंग है । अगर हम इसे ऐसा समझें । 1 मां है । उसकी 1 बेटी है । और उसकी 1 बेटी है । उन तीनों के शरीर में 1 ही रक्त प्रवाहित होता है । उन तीनों के body का निर्माण 1 ही तरह के सेल्स से । 1 ही तरह के कोष्ठों से होता है । और वैज्ञानिक 1 शब्द का प्रयोग करते हैं । empathy का । जो चीजें 1 से ही पैदा होती हैं । उनके भीतर 1 अंतर समानुभूति होती है । सूर्य से पृथ्वी पैदा होती है । पृथ्वी से हम सबके शरीर निर्मित होते हैं । थोड़ा ही दूर फासले पर सूरज हमारा महापिता है । सूर्य पर जो भी घटित होता है । वह हमारे रोम रोम में स्पंदित होता है । होगा ही । क्योंकि हमारा रोम रोम भी सूर्य से ही निर्मित है । सूर्य इतना दूर दिखाई पड़ता है, इतना दूर नहीं है । हमारे रक्त के 1-1 कण में । और हड्डी के 1-1 टुकड़े में । सूर्य के ही अणुओं का वास है । हम sun के ही टुकड़े हैं । और यदि सूर्य से हम प्रभावित होते हों । तो इसमें कुछ आश्चर्य नहीं । empathy है । समानुभूति है । समानुभूति को भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है । तो ज्योतिष के 1 आयाम में प्रवेश हो सकेगा । कल मैंने twin बच्चों की बात आपसे की । अगर 1 ही अंडे से पैदा हुए 2 बच्चों को 2 कमरों में बंद कर दिया जाए । और इस तरह के बहुत से experiment पिछले 50 वर्षों में किए गए हैं । 1 ही अंडज जुड़वां बच्चों को 2 कमरों में बंद कर दिया गया है । फिर दोनों कमरों में 1 साथ घंटी बजाई गई है । और दोनों बच्चों को कहा गया है । उनको जो पहला खयाल आता हो । वे उसे कागज पर लिख लें । या जो पहला चित्र उनके दिमाग में आता हो । वे उसे कागज पर बना लें । और बड़ी हैरानी की बात है कि अगर 20 चित्र बनवाए गए हैं । दोनों बच्चों से । तो उसमें 90% दोनों बच्चों के चित्र 1 जैसे हैं । उनके मन में जो पहली विचारधारा पैदा होती है । जो पहला शब्द बनता है । या जो पहला चित्र बनता है । ठीक उसके ही करीब । वैसा ही विचार । और वैसा ही शब्द । दूसरे जुड़वां बच्चे के भीतर भी बनता । और निर्मित होता है । इसे वैज्ञानिक कहते हैं - एम्पैथी । इन दोनों के बीच इतनी समानता है कि ये 1 से प्रतिध्वनित होते हैं । इन दोनों के भीतर अनजाने मार्गों से जैसे जोड़ है । कोई कम्युनिकेशन है ।
सूर्य और पृथ्वी के बीच ऐसा ही कम्युनिकेशन है । ऐसा ही संवाद है प्रतिपल  । और पृथ्वी और मनुष्य के बीच भी इसी तरह का संवाद है प्रतिपल । तो सूर्य । पृथ्वी । और मनुष्य । उन तीनों के बीच निरंतर संवाद है । 1 निरंतर dialogue है । लेकिन वह जो संवाद है ।  dialogue है । वह बहुत गुह्य है । और बहुत आंतरिक है । और बहुत सूक्ष्म है । उसके संबंध में थोड़ी सी बातें समझेंगे । तो खयाल में आएगा । america में 1 रिसर्च सेंटर है ।  tree ring research सेंटर । वृक्षों में जो । वृक्ष आप काटें । तो वृक्ष के तने में आपको बहुत से रिंग्स । बहुत से वर्तुल दिखाई पड़ेंगे । फर्नीचर पर जो सौंदर्य मालूम पड़ता है । वह उन्हीं वर्तुलों के कारण है । 50 वर्ष से यह रिसर्च केंद्र । वृक्षों में जो वर्तुल बनते हैं । उन पर काम कर रहा है  । तो प्रोफेसर डगलस अब उसके डायरेक्टर हैं । जिन्होंने अपने life का अधिकांश हिस्सा । वृक्षों में जो वर्तुल बनते हैं । चक्र बन जाते हैं । उन पर ही पूरा व्यय किया है । बहुत से तथ्य हाथ लगे हैं । पहला तथ्य तो सभी को ज्ञात है । साधारणतः कि वृक्ष की age उसमें बने हुए rings के द्वारा जानी जा सकती है । जानी जाती है । क्योंकि प्रतिवर्ष 1 रिंग वृक्ष में निर्मित होता है । एक छाल वृक्ष छोड़ देता है । अपनी चमड़ी छोड़ देता है । और 1 रिंग निर्मित हो जाता है । वृक्ष की कितनी उम्र है । उसके भीतर कितने ring बने हैं । इनसे तय हो जाता है । अगर वह 50 साल पुराना है । उसने 50 पतझड़ देखे हैं । तो 50 रिंग उसके तने में निर्मित हो जाते हैं । और हैरानी की बात यह है । कि इन तनों पर जो रिंग निर्मित होते हैं । वे मौसम की भी खबर देते हैं । अगर मौसम बहुत गर्म और गीला रहा हो । तो जो रिंग है । वह चौड़ा निर्मित होता है । अगर मौसम बहुत सर्द और सूखा रहा हो । तो जो रिंग है । वह बहुत संकरा निर्मित होता है । हजारों साल पुरानी लकड़ी को काटकर पता लगाया जा सकता है कि उस वर्ष जब यह रिंग बना था । तो मौसम कैसा था । बहुत वर्षा हुई थी । या नहीं हुई थी । सूखा पड़ा था । या नहीं पड़ा था  । अगर बुद्ध ने कहा है कि इस वर्ष बहुत वर्षा हुई । तो जिस बोधिवृक्ष के नीचे वे बैठे थे । वह भी खबर देगा । कि वर्षा हुई कि नहीं हुई । बुद्ध से भूल चूक हो जाए । वह जो वृक्ष है । बोधिवृक्ष । उससे भूल चूक नहीं होती । उसका रिंग बड़ा होगा । छोटा होगा । डगलस इन वर्तुलों की खोज करते करते 1 ऐसी जगह पहुंच गया । जिसकी उसे कल्पना भी नहीं थी । उसने अनुभव किया कि प्रत्येक 11 वर्ष पर रिंग जितना बड़ा होता है । उतना फिर कभी बड़ा नहीं होता । और वह 11 वर्ष । वही वर्ष है । जब सूरज पर सर्वाधिक गतिविधि होती है । हर 11वें वर्ष पर । सूरज में 1 रिदम । 1 लयबद्धता है । हर 11 वर्ष पर सूरज बहुत सक्रिय हो जाता है । उस पर रेडियो एक्टिविटी बहुत तीव्र होती है । सारी पृथ्वी पर उस वर्ष सभी वृक्ष मोटा रिंग बनाते हैं  । एकाध जगह नहीं । एकाध जंगल में नहीं । सारी पृथ्वी पर । सारे वृक्ष उस वर्ष उस रेडियो एक्टिविटी से अपनी रक्षा करने के लिए मोटा रिंग बनाते हैं । वह जो सूरज पर तीव्र घटना घटती है । ऊर्जा की । उससे बचाव के लिए उनको मोटी चमड़ी बनानी पड़ती है । उस वर्ष । हर 11 वर्ष । इससे वैज्ञानिकों में 1 नया शब्द और 1 नयी बात शुरू हुई । मौसम सब जगह अलग होते हैं । यहां सर्दी है । कहीं गर्मी है । कहीं वर्षा है । कहीं शीत है । सब जगह मौसम अलग हैं । इसलिए अब तक कभी पृथ्वी का मौसम । climate of the earth । ऐसा कोई शब्द प्रयोग नहीं होता था । लेकिन अब डगलस ने इस word का प्रयोग करना शुरू किया है । क्लाइमेट ऑफ दि अर्थ । ये सब छोटे मोटे फर्क तो हैं ही । लेकिन पूरी पृथ्वी पर भी सूरज के कारण 1 विशेष मौसम चलता है । जो हम नहीं पकड़ पाते । लेकिन वृक्ष पकड़ते हैं । हर 11वें वर्ष पर वृक्ष मोटा रिंग बनाते हैं । फिर रिंग छोटे होते जाते हैं । फिर 5 साल के बाद बड़े होने शुरू होते हैं । फिर 11वें साल पर जाकर पूरे बड़े हो जाते हैं ।

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