सोमवार, नवंबर 21, 2011

क्योंकि हमारे कान सीमा में ही सुनते हैं



अब तक हमने जो भी श्रेष्ठतम घड़ियां बनाई हैं । वे कोई भी उतनी टु दि टाइम । उतना ठीक से समय नहीं बतातीं । जितनी पृथ्वी बताती है । पृथ्वी अपनी कील पर 23 घंटे 56 मिनट में 1 चक्कर पूरा करती है । उसी के आधार पर 24 घंटे का हमने हिसाब तैयार किया हुआ है । और हमने घड़ी बनाई हुई है । और पृथ्वी काफी बड़ी चीज है । अपनी कील पर वह ठीक 23 घंटे 56 मिनट में 1 चक्र पूरा करती है । और अब तक कभी भी ऐसा नहीं समझा गया था कि पृथ्वी कभी भी भूल करती है । 1 सेकेंड की भी । लेकिन कारण कुल इतना था कि हमारे पास जांचने के बहुत ठीक उपाय नहीं थे । और हमने साधारण जांच की थी ।
लेकिन जब 90 वर्ष का वर्तुल पूरा होता है । सूर्य का । तो पृथ्वी की घड़ी एकदम डगमगा जाती है । उस क्षण में पृथ्वी ठीक अपना वर्तुल पूरा नहीं कर पाती । 11 वर्ष में जब सूरज पर उत्पात होता है । तब भी पृथ्वी डगमगा जाती है । उसकी घड़ी गड़बड़ हो जाती है । जब भी पृथ्वी रोज अपनी यात्रा में नये नये प्रभावों के अंतर्गत आती है । जब भी कोई नया प्रभाव । कोई नया कास्मिक इनफ्लुएंस । कोई महा तारा करीब हो जाता है । और करीब का मतलब । इस महा आकाश में बहुत दूर होने पर भी चीजें बहुत करीब हैं । जरा सा करीब आ जाता है । हमारी भाषा बहुत समर्थ नहीं है । क्योंकि जब हम कहते हैं । जरा सा करीब आ जाता है । तो हम सोचते हैं कि शायद जैसे हमारे पास कोई आदमी आ गया । नहीं । फासले बहुत बड़े हैं । उन फासलों में जरा सा अंतर पड़ जाता है । जो कि हमें कहीं पता भी नहीं चलेगा । तो भी पृथ्वी की कील डगमगा जाती है ।
पृथ्वी को हिलाने के लिए बड़ी शक्ति की जरूरत है । इंच भर हिलाने के लिए भी । तो महा शक्तियां जब गुजरती हैं । पृथ्वी के पास से । तभी वह हिल पाती है । लेकिन वे महा शक्तियां जब पृथ्वी के पास से गुजरती हैं । तो हमारे पास से भी गुजरती हैं । और ऐसा नहीं हो सकता कि जब पृथ्वी कंपित होती है । तो उस पर लगे हुए वृक्ष कंपित न हों । और ऐसा भी नहीं हो सकता कि जब पृथ्वी कंपित होती है । तो उस पर जीता और चलता हुआ मनुष्य कंपित न हो । सब कंप जाता है ।
लेकिन कंपन इतने सूक्ष्म हैं कि हमारे पास कोई उपकरण नहीं थे । अब तक कि हम जांच करते कि पृथ्वी कंप जाती है । लेकिन अब तो उपकरण हैं । सेकेंड के हजारवें हिस्से में भी कंपन होता है । तो हम पकड़ लेते हैं । लेकिन आदमी के कंपन को पकड़ने के उपकरण अभी भी हमारे पास नहीं हैं । वह मामला और भी सूक्ष्म है । आदमी इतना सूक्ष्म है । और होना जरूरी है । अन्यथा जीना मुश्किल हो जाए । अगर 24 घंटे आपको चारों तरफ के प्रभावों का पता चलता रहे । तो आप जी न पाएं । आप जी सकते हैं । तभी जब कि आपको आसपास के प्रभावों का कोई पता नहीं चलता ।
एक और नियम है । वह नियम यह है कि न तो हमें अपनी शक्ति से छोटे प्रभावों का पता चलता है । और न अपनी शक्ति से बड़े प्रभावों का पता चलता है । हमारे प्रभाव के पता चलने का एक दायरा है ।
जैसे समझ लें कि बुखार चढ़ता है । तो 98 डिग्री हमारी एक सीमा है । और 110 डिग्री हमारी दूसरी सीमा है । 12 डिग्री में हम जीते हैं । 90 डिग्री नीचे गिर जाए तापमान । तो हम समाप्त हो जाते हैं । उधर 110 डिग्री के बाहर चला जाए । तो हम समाप्त हो जाते हैं । लेकिन क्या आप समझते हैं । दुनिया में गर्मी 12 डिग्रियों की ही है ? आदमी 12 डिग्री के भीतर जीता है । दोनों सीमाओं के इधर उधर गया कि खो जाएगा । उसका 1 बैलेंस है । 98 और 110 के बीच में । उसको अपने को सम्हाले रखना है ।
ठीक ऐसा बैलेंस सब जगह है । मैं आपसे बोल रहा हूं । आप सुन रहे हैं । अगर मैं बहुत धीमे बोलूं । तो ऐसी जगह आ सकती है कि मैं बोलूं । और आप न सुन पाएं । लेकिन यह आपको खयाल में आ जाएगा कि बहुत धीमे बोला जाए । तो सुनाई नहीं पड़ेगा । लेकिन आपको यह खयाल में न आएगा कि इतने जोर से बोला जाए कि आप न सुन पाएं । तो आपको कठिन लगेगा । क्योंकि जोर से बोलेंगे । तब तो सुनाई पड़ेगा ही ।
नहीं । वैज्ञानिक कहते हैं । हमारे सुनने की भी डिग्री है । उससे नीचे भी हम नहीं सुन पाते । उसके ऊपर भी हम नहीं सुन पाते । हमारे आसपास भयंकर आवाजें गुजर रही हैं । लेकिन हम सुन नहीं पाते । 1 तारा टूटता है । आकाश में । कोई नया ग्रह निर्मित होता है । या बिखरता है । तो भयंकर गर्जना वाली आवाजें हमारे चारों तरफ से गुजरती हैं । अगर हम उनको सुन पाएं । तो हम तत्काल बहरे हो जाएं । लेकिन हम सुरक्षित हैं । क्योंकि हमारे कान सीमा में ही सुनते हैं । जो सूक्ष्म है । उसको भी नहीं सुनते । जो विराट है । उसको भी नहीं सुनते । 1 दायरा है । बस उतने को सुन लेते हैं ।
देखने के मामले में भी हमारी वही सीमा है । हमारी सभी इंद्रियां 1 दायरे के भीतर हैं । न उसके ऊपर । न उसके नीचे । इसीलिए आपका कुत्ता है । वह आपसे ज्यादा सूंघ लेता है । उसका दायरा सूंघने का । आपसे बड़ा है । जो आप नहीं सूंघ पाते । कुत्ता सूंघ लेता है । जो आप नहीं सुन पाते । आपका घोड़ा सुन लेता है । उसके सुनने का दायरा आपसे बड़ा है । 1-डेढ़ मील दूर सिंह आ जाए । तो घोड़ा चौंककर खड़ा हो जाता है । डेढ़ मील के फासले पर उसे गंध आती है । आपको कुछ पता नहीं चलता । अगर आपको सारी गंध आने लगें । जितनी गंध आपके चारों तरफ चल रही हैं । तो आप विक्षिप्त हो जाएं । मनुष्य 1 कैप्सूल में बंद है । उसकी सीमांत है । उसकी बाउंड्रीज हैं ।

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