सोमवार, नवंबर 21, 2011

ये सारी दुनिया में जो प्रेमी टूट जाते हैं उसमें और क्या बात है ?



मैं आपको एक सूत्र की बात कहूं । जिस मनुष्य के पास प्रेम है । उसकी प्रेम की मांग मिट जाती है । और यह भी मैं आपको कहूं । जिसकी प्रेम की मांग मिट जाती है । वही केवल प्रेम को दे सकता है । जो खुद मांग रहा है । वह दे नहीं सकता है ।
इस जगत में केवल वे लोग प्रेम दे सकते हैं । जिन्हें आपके प्रेम की कोई अपेक्षा नहीं है । केवल वे ही लोग । महावीर और बुद्ध इस जगत को प्रेम देते हैं । जिनको हम समझ ही नहीं पाते । हम सोचते हैं । वे तो प्रेम से मुक्त हो गए हैं । वे ही केवल प्रेम दे रहे हैं । आप प्रेम से बिलकुल मुक्त हैं । क्योंकि उनकी मांग बिलकुल नहीं है । आपसे कुछ भी नहीं मांग रहे हैं । सिर्फ दे रहे हैं ।
प्रेम का अर्थ है । जहां मांग नहीं है । और केवल देना है । और जहां मांग है । वहां प्रेम नहीं है । वहां सौदा है । जहां मांग है । वहां प्रेम बिलकुल नहीं है । वहां लेन देन है । और अगर लेन देन जरा ही गलत हो जाए । तो जिसे हम प्रेम समझते थे । वह घृणा में परिणत हो जाएगा । लेन देन गड़बड़ हो जाए । तो मामला टूट जाएगा । ये सारी दुनिया में जो प्रेमी टूट जाते हैं । उसमें और क्या बात है ? उसमें कुल इतनी बात है कि लेन देन गड़बड़ हो जाता है । मतलब हमने जितना चाहा था मिले । उतना नहीं मिला । या जितना हमने सोचा था दिया । उसका ठीक प्रतिफल नहीं मिला । सब लेन देन टूट जाते हैं ।
प्रेम जहां लेन देन है । वहां बहुत जल्दी घृणा में परिणत हो सकता है । क्योंकि वहां प्रेम है ही नहीं । लेकिन जहां प्रेम केवल देना है । वहां वह शाश्वत है । वहां वह टूटता नहीं । वहां कोई टूटने का प्रश्न नहीं । क्योंकि मांग थी ही नहीं । आपसे कोई अपेक्षा न थी कि आप क्या करेंगे । तब मैं प्रेम करूंगा । कोई कंडीशन नहीं थी । प्रेम हमेशा अनकंडीशनल है । कर्तव्य । उत्तरदायित्व । वे सब अनकंडीशनल हैं । वे सब प्रेम के रूपांतरण हैं । तो मैं आपसे नहीं कहता । आप कैसे कर्तव्य निभाएं । जब आपको यह खयाल ही उठ आया है कि कैसे कर्तव्य निभाएं । तो आप पक्का समझ लें । आपके भीतर कोई प्रेम नहीं है । तो मैं आपसे यह कहूंगा । प्रेम कैसे पैदा हो जाए । और यह भी आपको इस सिलसिले में कह दूं कि प्रेम केवल उस आदमी में होता है । जिसको आनंद उपलब्ध हुआ हो । जो दुखी हो । वह प्रेम देता नहीं । प्रेम मांगता है । ताकि दुख उसका मिट जाए । आखिर प्रेम की मांग क्या है ? सारे दुखी लोग प्रेम चाहते हैं । वे प्रेम इसलिए चाहते हैं कि वह प्रेम मिल जाएगा । तो उनका दुख मिट जाएगा । दुख भूल जाएगा । प्रेम की आकांक्षा भीतर दुख के होने का सबूत है । तो फिर प्रेम वह दे सकेगा । जिसके भीतर दुख नहीं है । जिसके भीतर कोई दुख नहीं है । जिसके भीतर केवल आनंद रह गया है । वह आपको प्रेम दे सकेगा । अब अगर मेरी बात ठीक से समझें । दुख भीतर हो । तो उसका प्रकाशन प्रेम की मांग में होता है । और आनंद भीतर हो । तो उसका प्रकाशन प्रेम के वितरण में होता है । प्रेम जो है । आनंद का प्रकाश है । तो जो आदमी भीतर आनंद से भरेगा । उसके जीवन के चारों तरफ प्रेम विकीर्ण हो जाएगा । जो भी उसके निकट आएगा । उसे प्रेम उपलब्ध होगा । जो भी उसके करीब होगा । उसका कर्तव्य पूरा हो जाएगा । उसका उत्तरदायित्व निभेगा । और उस आनंद के लिए तो मैं आपसे कहा कि अगर मैं कहूं कि प्रेम आनंद का प्रकाश है । तो आनंद आत्मबोध का अनुभव है । उसके पूर्व नहीं है । दुख है कि हम अपने को नहीं जानते । अपने को नहीं जानते । इसलिए प्रेम` मांगते हैं । अगर हम अपने को जानेंगे । आनंद होगा । आनंद होगा । तो प्रेम हमसे विकीर्ण होगा ।
दूसरे की किसी बात को लेकर सोचें मत । और तुम यही सोचते रहते हो । 99% बातें जो तुम सोचते हो । उनका लेना देना दूसरों से रहता है । छोड़ दें । उन्हें इसी वक्त छोड़ दें । तुम्हारा जीवन बहुत छोटा है । और जीवन हाथों से फिसला जा रहा है । हर घड़ी तुम कम हो रहे हो । हर दिन तुम कम हो रहे हो । और हर दिन तुम कम जीवित होते जाते हो । हर जन्म दिन तुम्हारा मरण दिन है । तुम्हारे हाथों से एक वर्ष और फिसल गया । कुछ और प्रज्ञावान बनो । ओशो ।

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