
तुलसी का ये दोहा बेहद विलक्षण है . भक्ति..वास्तविक भक्ति
स्वतंत्र है कोई बन्धन नहीं कोई नियम नहीं कोई देवता नहीं
ये गूढ भक्ति सम्पूर्ण सुखों की खान है..लेकिन कोई भी इसको
बिना सत्संग के नहीं पा सकता है..क्या तुलसी झूठ बोल रहे है
हरगिज नहीं..फ़िर भक्ति तो सभी कर रहें हैं और सभी दुखी
और अशान्त है..तुलसी कौन से सत्संग की बात कर रहे है .
सत्संग तो आजकल इतना सस्ता है कि रोटी सब्जी उससे कई गुना महँगी है सुबह उठकर टी.वी खोलो तो सत्संग सुनाने वालों की लम्बी लाइन लगी है..फ़िर हमें सम्पूर्ण सुख क्यों नहीं मिल रहे ..दरअसल तुलसी जिस सत्संग की बात कर रहे वो सुनने का नहीं बल्कि अनुभव का सत्संग है..हँस दीक्षा पा लेने के बाद के अनुभव का सत्संग ..आगे देखिये..
एक घङी आधी घङी आधी हू पुनि आधि .
तुलसी संगति साधु की कटे कोटि अपराध..
ये चौथाई घङी की संगति कौन सी संगति है जो हमारे करोङो जन्म के अपराध काटने की क्षमता रखती है..मैं फ़िर कहूँगा क्या तुलसीदास झूठ बोल रहे हैं ...? हरगिज नहीं ..दरअसल ये सच्चे संत की संगति की तरफ़ तुलसी ने इशारा किया है और सच्चे संत थोक के भाव नहीं मिलते विचार करें ऐसा होता तो पापमुक्त होना कितना आसान था..आज कितने
संत हैं जो आसानी से सुलभ हैं और हरेक ने कभी न कभी अपने जीवन में सौ , दोसौ घंटे का सत्संग अवश्य सुना होगा तो फ़िर परेशानी क्या है..दरअसल जिन प्रवचनकर्ताओं को आप संत मानते हैं उनकी भीङ हमेशा बनी रही है .द्वापर युग के लास्ट में परीक्षित जब शापित हो गया और म्रत्यु के भय से मुक्ति का रास्ता खोज रहा था तो अठासी हजार ॠषियों ने कहा राजन जो तुम खोज रहे हो वो कोई मामूली बात नही हैं ..भले ही ये आश्चर्य की बात हो पर आयु में हम सबसे बहुत छोटे श्री शुकदेव जी ही इस ग्यान को जानते हैं .
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिय तुला इक अंग ...तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सत्संग..
हे तात..स्वर्ग और अपवर्ग (प्रायः लोग स्वर्ग को ही सबसे बङा स्थान मानते हैं और मरने के बाद स्वर्ग पहुँच जाना सबसे बङी उपलब्धि..मुझे क्षमा करें पर किसी का देहांत होने के बाद उसे स्वर्गवासी कहा जाता है और प्रायः सभी
के लिये ऐसा कहतें है .जरा विचार करें मरने से आदमी स्वर्गवासी हो जाता है इससे बङी बात क्या हो सकती है..खैर..अपवर्ग स्वर्ग की अपेक्षा कई गुना बेहतर हैं पर वो भी कोई बङी उपलब्धि नहीं ..ये मैं नहीं कह रहा तुलसी कह रहें है कि तराजू के एक पलङे में स्वर्ग और अपवर्ग दोनों को रख दो फ़िर भी इनकी महत्ता उतनी भी नहीं बल्कि उसके सामने एक तिनके की हैसियत रखती है जो महत्व एक क्षण के सत्संग का है जाहिर है ये सत्संग कोई बेहद ऊँची ही चीज है और थोङी हँसी सी आती है आजकल मुफ़्त में मिल रहा है ..मैं इतना ही कह सकता हूँ ..जय हो कलियुग की..आगे क्या बताऊँ आप मुझसे ज्यादा ही समझदार हैं .??
1 टिप्पणी:
मेरा ब्लागिंग उद्देश्य गूढ रहस्यों को
आपस में बांटना और ग्यानीजनों से
प्राप्त करना भी है..इसलिये ये आवश्यक नहीं
कि आप पोस्ट के बारे में ही कमेंट करे कोई
दुर्लभ ग्यान या रोचक जानकारी आप सहर्ष
टिप्पणी रूप में पोस्ट कर सकते हैं ..आप सब का हार्दिक
धन्यवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com
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