
कीट न जाने भ्रंग को ये करले आप समान..
कभी कभी मेरे मन में ये बात आती है कि जो जानकारी मैं
ब्लाग के माध्यम से सबको दे रहा हूँ .वो क्या कोई नयी बात है या और लोग उसे नहीं जानते..इस बारे में मेरी कोई निश्चित राय नहीं है पर जब भी मैं सत्संग में इस बात को कहता हूँ कि विहंगम मार्ग ही असली संतों का मार्ग है और गुरुओं में भ्रंग गुरु सबसे श्रेष्ठ हैं तो अक्सर लोग मुझसे पूछ बैठते हैं कि
प्रेमी जी ये बताईये कि भ्रंग गुरु किसे कहते हैं ?
आइये भ्रंग के बारे में जाने..
भ्रंग संस्क्रत भाषा का शब्द है..और भ्रंग कीट उस चींटेनुमा कीट को कहते है जिसके पंख होते हैं और जो उङ सकता है..कुछ जगह इसे लखारी..,कुछ जगह इसे घुरघुली..आदि कहते हैं . इसका नाम चाहे स्थान के हिसाब से कुछ भी हो पर इसकी पहचान बेहद सरल है..यह खासतौर पर दीवारों, जंगलों, दरबाजों आदि पर मिट्टी का गोल घर बनाता है उस घर में छेद रूपी कई दरबाजे होते है ..इसकी सबसे बङी खास बात ये होती है कि ये किसी भी प्रकार के प्रजनन के द्वारा
बच्चे पैदा नहीं करता, बल्कि ये घास में रहने वाले तिनके के समान कीङे को उठाकर अपने घर ले आता है इसकी हूँ..हूँ रूपी गुंजार से भयभीत कीङा बेहोश हो जाता है और फ़िर इसकी निरंतर गुंजार से भयभीत कीट इसी का रूप धारण कर लेता है..ये प्रभु की अनंत रहस्यमय लीलाओं में से एक है..और फ़िर तिनके के समान वह कीङा भ्रंगी के समान ही शक्तिशाली हो जाता है और वैसा ही रूप धारण कर लेता है ऐसे ही भ्रंग गुरु एक साधारण जीव को पात्र बनाकर उसे अनंत ऊँचाईयों तक पहुँचाने की सामर्थ्य रखते है..पर भ्रंग गुरु कई जन्मों के पुण्य से मिलते हैं और बेहद दुर्लभ होते है..और ये किसी को भी बेहद आसानी से मिल सकते हैं इस सम्बन्ध में मैं एक विस्त्रत लेख लिखूँगा दरअसल कम शब्दों में सतगुरु कैसे मिले ..ये समझाना संभव नही है
अंत में तुलसीदास जी कहते हैं..पारस और संत में यही अंतरो जान..वो लोहा कंचन करे ये करले आपु समान
1 टिप्पणी:
मेरा ब्लागिंग उद्देश्य गूढ रहस्यों को
आपस में बांटना और ग्यानीजनों से
प्राप्त करना भी है..इसलिये ये आवश्यक नहीं
कि आप पोस्ट के बारे में ही कमेंट करे कोई
दुर्लभ ग्यान या रोचक जानकारी आप सहर्ष
टिप्पणी रूप में पोस्ट कर सकते हैं ..आप सब का हार्दिक
धन्यवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com
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