बुधवार, मार्च 31, 2010

जीव तो नित्य है .फ़िर कैसा रोना..

क्षिति जल पावक गगन समीरा .पँच रचित अति अधम शरीरा .. प्रगट सो तनु तब आगे सोवा , जीव नित्य तब केहि लग रोवा ..
बाली के मरने पर श्रीराम ने समझाया कि हे तारा प्रथ्वी , जल . अग्नि , आकाश , और वायु इन पाँच तत्वों से इस अधम शरीर
की रचना हुयी है लेकिन इसमें रहने वाला जीव अविनाशी और नित्य है इसलिये इसके (शरीर के ) मर जाने पर रोना व्यर्थ है .
उमा कहँउ मैं अनुभव अपना , सत हरिनाम जगत सब सपना .शंकर जी पार्वती से कहते हैं कि हे पार्वती मैं अपने अनुभव से कहता हूँ कि ये द्रश्यमान जगत एक सपना मात्र है .अर्थात वास्तव में नजर आने पर भी यह एक भ्रम मात्र ही है और इस माया प्रपँचमय जगत में हरि नाम (ढाई अक्षर का महामन्त्र ) ही सत्य का बोध कराने वाला है .

गगन चढइ रज पवन प्रसंगा , कीचहि मिले नीच जल संगा ..
आसमान की और उठने वाली वायु के सम्पर्क में आकर धूल आसमान में पहुँच जाती है और वही धूल जब नीच जल (जल में नीचे की और बहने की प्रव्रति होति है ,इसलिये यह उपमा दी गयी है ) के सम्पर्क में आती है तो कीच का रूप ले लेती है इसलिये अच्छी संगति पर विशेष जोर दिया गया है .
अब प्रभु क्रपा करहु येहि भांती , सब तजि भजन करहुँ दिन राती ..
हे प्रभु मैं माया में आकर आपको भूल गया था .अब इस प्रकार किरपा करें कि सब कुछ भुलाकर नाम (ढाई अक्षर का महामन्त्र में ) का सुमरण करूँ .
यह फ़ल साधन से नहिं होई , तुम्हरी किरपा पाय कोई कोई
हे प्रभु आपकी प्राप्ति किसी भक्ति ,या योग साधन या अन्य किसी साधन से नहीं होति बल्कि उल्टे ये तो अहम को और बङाने वाले हैं आपकी किरपा प्राप्त करने के लिये समर्पण ही सबसे उत्तम उपाय है..अर्थात समर्पण कर देने से आपकी क्रपा सहज ही होती है ..

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