गुरुवार, मई 13, 2010

साधु और कामवासना..औरत्..धन् ..आदि

साधु संतों को लेकर हमारी एक रेडीमेड पुख्ता और बेहद आम धारणा है कि साधु
को धन माया और कामवासना से दूर रहना चाहिये . क्यों ? जरा विचार करें..साधु
आपकी तरह रोटी नहीं खाता..पानी नहीं पीता..उसके एक आंख होती है...वह हंगता नहीं है कि मूतता नहीं है..या नारी अंगो..स्तन नितम्ब..कटि..आदि को देखकर उसके अंदर कामभाव का संचार नहीं होता...अवश्य होता है..भले ही वह एक आम आदमी की अपेक्षा बेहद संतुलित और नियंत्रित होता हो.. मेरा क्योंकि साधु समाज में बेहद उठना बैठना है इसलिये मैं यह बात भलीभांति जानता हूँ
वे सब शरीर क्रियायें जो आपके अंदर हैं एक साधु के अंदर भी हैं..इसको भलीभांति
समझने के लिये कबीर का एक दोहा बताना उचित है..जब मैं था तब हरि नहीं जब
हरि हैं मैं नाहि..इसका अर्थ है कि जब कोई साधु गहरे ध्यान या समाधि अवस्था में होता है तो मैं ( देहीभाव ) हट जाता है और मैं के हटते ही भगवान प्रकट हो जाता है उस अवस्था मैं कामभावना तो क्या कोई भावना ही नहीं रहती...लेकिन ध्यान से उतरने के बाद फ़िर उसमें देही के गुण आ जाते हैं..
आप एक प्राय सब के द्वारा अनुभूत बात पर गौर करें और ये बङे रहस्य की बात है जो मैं बताने जा रहा हूँ..लिंग तभी खङा होता है जब उसमें उत्तेजना आती है और कामरस का संचार होता है..चौबीस घन्टे में एक पूर्ण स्वस्थ आदमी (या औरत भी ) जो खाना आदि शरीर के लिये पौष्टिक पदार्थ का सेवन करता है..वह विभिन्न क्रियाओं
के द्वारा गुजरता हुआ खून आदि बनाता हुआ उस संशोधित रस में बदल जाता है जिसे वीर्य कहते है..और ये वीर्य जब संचित होने के लिये कोष में पहुँच जाता है..तो लिंग रूपी संकेतक ये बताने के लिये हाथ ऊँचा कर लेता है कि ये डिपार्टमेंट पूरी मुस्तैदी से काम कर रहा है..और आपको सूचना देकर पुनः नार्मल हो जाता है..आंख आपको सुबह कीचङ के रूप में जीभ मल के रूप में...नाक कान गुदा त्वचा आदि..सब अपना काम करके डेली रेपोर्ट देते हैं कि नहीं...और समझें ..एक एक साल से लेकर..पाँच साल तक बच्चा क्या किसी औरत के स्तन या नितम्बों को देखकर..उत्तेजित हो सकता है..नहीं ना आप देखें उसका लिंग एक युवक की तुलना में चौबीस घन्टे में कहीं अधिक बार खङा होता है ..सीधी सी बात है कि तमाम समस्याओं से बेफ़िक्र इस बच्चे की शरीर प्रणाली बहुत ही बेहतर ढंग से काम कर रही है..अब इसमें कोई शोध करने की आवश्यकता तो नहीं है कि ऐसा कामवासना की इच्छा से हो रहा है..दरअसल वो उस समय कामवासना को जानता तक नहीं .
आपने यदि पुराणों और धर्मशास्त्रों का सटीक अध्ययन किया है तो आप ने देखा होगा कि एक एक रिषी मुनी दो दो तक पत्नियां रखते थे..इसके बाबजूद कहीं कहीं उनके अन्य स्त्रियों से भी सम्बन्ध का जिक्र है..साधना में विघ्न डालने वाली इन्द्र प्रेषित अप्सराओं से संभोग के अनेकों वर्णन है...हमारी तरह उनके बच्चे भी थे..अप्सराओं से सालों तक भोग करने के बाद पाँच से लेकर दस दस तक संताने हुयी..कबीर की पत्नी नहीं थी..रैदास की पत्नी नहीं थी क्या बात और भी है आज जो आप पौराणिक इतिहास पढते हैं अगर आप इस का मूल वर्जन पढे जो सिर्फ़ संस्कृत भाषा में है..तो आपको रंगीन और बेहद रोमांटिक उपन्यास या कहानी कविता भी फ़ीके लगेंगे..हिन्दी टीकाकारों ने पता नहीं क्यों इस तरह के मैटर को न सिर्फ़ घुमा कर बेहद शालीन कर दिया..बल्कि एक तरह से इसका मतलब ही दूसरा कर दिया..इसमें सबसे बङी भूमिका गोरखपुर के एक प्रकाशन की वर्तमान में सबसे अधिक है...सत्य को भयभीत होकर गलत ढंग से परोसना..अरे जो हुआ.. या था ..वो था ही...उसको बदलने से
संस्कृति का विकास हुआ या विनाश..ये विचार करने की आवश्यकता है ? अब इस बात पर आपको मोटे मोटे और भारी ग्रन्थों में सिर खपाने की आवश्यकता नहीं हैं मैं आपको बेहद मजबूत और पुख्ता सबूत देता हूँ जिसको बच्चा बच्चा जानता हैं .
आपने च्यवनप्राश का नाम अवश्य सुना होगा जिसकी दो चम्मच चाटने से बुढ्ढा जवान हो जाता है..इसको इंडियन वियाग्रा कहें तो उचित नहीं होगा क्या..इस च्यवनप्राश की उत्पत्ति ही दरअसल देवताओं के वैध अश्विनी कुमारों (ये एक ही नाम के साथ रहने वाले दो थे ) द्वारा केवल इसी उद्देश्य से की गयी थी कि बूढे चवन जवान नजर आयें और राजा की लङकी जिसे लगभग उन्होनें जबरन ( सत्रह बरस की ) पत्नी बनाया था से भरपूर संभोग कर सकें...जबकि वह बुढापे के कारण उन्हें पिता समान मानती थी . इसमें अश्विनी कुमारों का निजी स्वार्थ ये था कि चवन द्वारा उन्हें देवताओं को मिलने वाले भोग आदि में हिस्सा दिलाने का वादा करना था जो उन्होनें दिलाया भी . ये पूरी बात कहने का अभिप्राय ये है कि ये घटना चवन के साथ उस समय घटी जब वे एक पेढ के नीचे दीर्घकाल से समाधि ( जङ समाधि ) में थे यहाँ तक कि उनका शरीर दीमक चींटी..आदि द्वारा थोपी गयी मिट्टी से सिर की चोटी तक ढक गया था...और इसके बाद राजा की कन्या द्वारा उनकी चमकती हुयी आंखों को अग्यानता में फ़ोङ देना..चवन द्वारा राजा का पूरा दल स्तंभित कर देना..राजा के माफ़ी मांगने पर चवन द्वारा शर्त..कि राजा अपनी जवान और खूबसूरत कन्या उन्हें दे ..मजबूर राजा द्वारा कन्या देना..अब मैं जो सबूत के रूप में कहना चाह रहा हूँ आप जरा विचार करें..चवन बहुत समय से समाधि में लीन थे..इतनी शक्ति थी कि अश्विनी कुमारों ( देवता) को यग्य आहुतियों में भाग (हिस्सा) दिलवाया..वृद्ध हो चुके थे..शरीर जर्जर था..मगर कामवासना सामान्य सेभी प्रबल थी..क्योंकि साधुचर्या में काम का उपभोग कर ही नहीं पाये और वो मन के किसी कोने में दवी रही..बाद में राजा की कन्या को देखकर प्रबल हो गयी..अगर आपको ये पूर्ण विवरण मूल रूप में पङने को मिल जाय तो आपको पता चलेगा कि किस तरह चवन राजकुमारी के काम अंगो का स्पर्श करने को मचल रहे थे और वो सकुचाहट और घिन की द्रष्टि से देख रही थी तब हार कर कन्या ने शर्त रखी कि वे एक युवक के समान दिखने लगे तो वह उन्हें अपने
साथ संभोग की इजाजत दे सकती है...आदि .
क्या ये सबूत काफ़ी नहीं कि एक ग्यानी साधु में उसकी निज स्थिति के अनुसार कम या अधिक कामवासना का होना एक सामान्य बात है ...अब जरा इस तरह के विवरण पर गौर करें जो पुराणों में आम है..कोई रिषी मुनी या साधु की कुटिया है..कोई अप्सरा या साधारण युवती जो यौवन रस से परिपूर्ण है यहाँ किसी कारणवश पहुँची..और साधु ने कहा..आओ देवी..तुम कौन हो..जो इस निर्जन वन प्रान्त में यूँ अकेले भटक रही हो...या तो तुम कोई
अप्सरा मालूम होती हो..या किसी उच्च कुल या किसी राजघराने की कन्या..तुम्हारा सुन्दर मुखमन्डल चन्द्रमा के समान चमक रहा है..तुम्हारे सुर्ख अधरों पर गिरती ये लट इस तरह शोभायमान हो रही है मानों पुष्परस का लोभी कोई भंवरा पुष्प पर मंडरा रहा है..ओ..हो देवी तुम्हारे ये स्तनद्वय तो मानों अनमोल खजाने से भरे दो कलश है..जिनके भार से तुम्हारी नाजुक कटि ( कमर ) आगे को झुक गयी प्रतीत होती है..देवी उन्नत पर्वत शिखरों को चुनौती देने वाले तुम्हारे वक्ष और प्रष्ठभाग में आखिर कौन सी सम्पदा भरी पङी है जो ये इतने विशाल और
शोभायमान हो रहें हैं आदि..देखिये ये साधु के वचन हैं...इसी तरह आप दुश्यंत के विरह में शकुंतला का वर्णन पढे..जो बगीचे में नग्न स्तनों पर चन्दन आदि शीतल पदार्थों का लेप कराती है और विरह में जलते हुये ह्रदय को शीतलता पहुँचाने के लिये बङे पत्तों द्वारा सखियों से हवा करवाती है..आदि.. इससे सिद्ध नहीं होता कि साधु जीवन में भी कामवासना का महत्व है पर वो नियंत्रित होती है..साधु का होना ग्यान का होना है..बाकी देहधर्म अपने स्थान पर है..अब आयी धन की बात..मान लीजिये आप का पाँच सदस्यों का परिवार है..और एक अकेला साधु अपनी कुटिया में रहता है..आप दो चार दिन पूरा दिन उसकी दिनचर्या देखें आपके घर की तुलना में उसका खर्चा दस गुना अधिक है..एक छोटा मोटा साधु भी जो बहुत कम पापुलर है उसके यहाँ आने जाने वालों की खातिर हेतु एक दिन में सौ कप ( या गिलास) चाय और प्रतिदिन बीस लोगों का भोजन बनना सामान्य बात है..आप को प्रसाद के रूप में कुछ मिठाई या अन्य अलग देता है..अब इस खर्चे के लिये वो फ़ेक्टरी लगाये..और आप थके हारे पहुँचे..उसने चाय पानी को पूछा तो अच्छा किया या बुरा किया..यह खर्च कहाँ से आये..आदि.?.तो सिद्ध हुआ कि साधु को अपने लिये कम आपके लिये धन की अधिक आवश्यकता है..लेकिन चाहे काम का मामला हो या धन का ..मैं हाल ही में गिरफ़्तार किये गये (सेक्स रेकेट चलाने वाले) पाखन्डी(और इसके जैसे अन्य ) साधुओं का समर्थन नहीं कर रहा जिनका ग्यान से दूर दूर तक वास्ता नहीं है .आप एक ही चश्मा लगाकर सवको न देखें..आप किसी धारणा विशेष के तहत किसी साधु का मूल्यांकन न करें उसको जानें..उन स्थितियो को जाने..जिनमें वह
वरत रहा है..और सबसे अच्छा ये है कि आप ऐसे किसी पचङों में पङें ही नहीं केवल ये
देखे कि साधु के पास ग्यान या अलौकिक ग्यान है या नहीं .
जाति न पूछो साध की पूछ लीजिये ग्यान ,मोल करो तलवार का पङा रहन दो म्यान अगर साधु के पास वास्तव में ग्यान है तो फ़िर म्यान ( उसका शरीर ) के विषय में आपका सारा चिंतन व्यर्थ ही होगा क्योंकि वास्तविक साधु की लीला समझने में ब्रह्मा विष्णु शेष महेश(हम असमर्थ हैं ऐसा कहा ) ने हाथ जोङ दिये तो आप स्वयं सोचें आप उनके सामने कहाँ ठहरते हैं ?
संतन्ह के महिमा रघुराई। बहु बिधि बेद पुरानन्ह गाई संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान बिख्याता।। संत असंतन्हि के असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी काटइ परसु मलय सुनु भाई। निज गुन देइ सुगंध बसाई।। कोमलचित दीनन्ह पर दाया। मन बच क्रम मम भगति अमाया सबहि मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम मम ते प्रानी।। अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँती। सब तजि भजनु करौं दिन राती।।

1 टिप्पणी:

Balsadhvi Aruna devi ने कहा…

मैंने प्रायः यह देखा है कि ब्लागर्स भाई अथवा अन्य पाठक
अक्सर नई पोस्ट पढने में ही रुचि लेते हैं पर इस सम्बन्ध
में मैं एक बात कहना चाहता हूँ कोई महत्वपूर्ण पुरानी पोस्ट
जो आपने पढी नहीं आपके लिये नयी ही है और हो सकता
है उसमें वही विषयवस्तु हो जो आप खोज रहें हों इसलिये
किसी भी ब्लाग पर एक निगाह सभी शीर्षकों पर डालेंगे
तो हो सकता है आपको कोई दुर्लभ जानकारी मिल ही जाय
satguru-satykikhoj.blogspot.com

आपका स्वागत है

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सहज सरस मधुर मनोहर भावपूर्ण कथा कार्यक्रम हेतु सम्पर्क करें। ------------- बालसाध्वी सुश्री अरुणा देवी (देवीजी) (सरस कथावाचक, भागवताचार्य) आश्रम श्रीधाम, वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) भारत सम्पर्क न. - 78953 91377 -------------------- Baalsadhvi Sushri Aruna Devi (Devi ji) (Saras Kathavachak, Bhagvatacharya) Aashram Shridham vrindavan (u. p) India Contact no - 78953 91377