प्लक्ष दीप के स्वामी मेधातिथि के सात पुत्र हुये । इनके नाम क्रमशः । शान्तभव । शिशिर । सुखोदय । नन्द । शिव । क्षेमक और ध्रुव थे । ये सभी प्लक्ष दीप के राजा बने । इस दीप में । गोमेद । चन्द्र । नारद । दुन्दुभि । सोमक । सुमनस । वैभ्राज । ये सात पर्वत हैं । यहां अनुतप्ता । शिखी । विपाशा । त्रिदिवा । क्रमु । अमृता । सुकृता । ये सात नदी हैं ।
वपुष्मान । शाल्मकदीप के स्वामी हुये । इस दीप में स्थित सात वर्ष ( देश ) के नाम से प्रसिद्ध उनके सात पुत्र थे । जिनके नाम । श्वेत । हरित । जीमूत । रोहित । वैधुत । मानस । सुप्रभ हैं । यहां कुमुद । उन्नत । द्रोण । महिष । बलाहक । क्रौंच्च । कुकुद्मान । ये सात पर्वत हैं । योनि । तोया । वितृष्णा । चन्द्रा । शुक्ला । विमोचनी । विधूति ये सात नदी हैं ।
कुशदीप के स्वामी ज्योतिष्मान थे । इनके सात पुत्र हुये । जिनके नाम । उद्भिद । वेणुमान । द्वैरथ । लम्बन । धृति । प्रभाकर । कपिल थे । इन्हीं के नाम पर सात देश हैं । यहां विद्रुम । हेमशील । धुमानु । पुष्पवान ।
कुशेशय । हरि । मन्दराचल ये सात पर्वत हैं । यहां धूतपापा । शिवा । पवित्रा । सन्मति । विधुदभ्र । मही ।
काशा ये सात नदी हैं ।
क्रौंच्च दीप के स्वामी धुतिमान के भी सात पुत्र थे । इनके नाम । कुशल । मन्दग । उष्ण । पीवर । अन्धकारक । मुनि । दुन्दुभि हुये । यहां । क्रौंच्च । वामन । अन्धकारक । दिवावृत । महाशैल । दुन्दुभि । पुण्डरीकवान
ये सात वर्ष पर्वत हैं । यहां । गौरी । कुमुद्वती । संध्या । रात्रि । मनोजवा । ख्याति । पुण्डरीका ये सात नदी
हैं ।
शाकदीप के राजा भव्य के भी सात पुत्र थे । इनके नाम । जलद । कुमार । सुकुमार । अरुणीबक । कुसुमोद ।
समोदार्कि । महाद्रुम थे । यहां । सुकुमारी । कुमारी । नलिनी । धेनुका । इक्षु । वेणुका । गभस्ति ये सात नदी
हैं ।
पुष्कर दीप के राजा शबल के दो पुत्र । महावीर और धातिक थे । इन्ही के नाम पर दो वर्ष या देश यहां थे ।इन दोनों देशों के मध्य मानसोत्तर नामक वर्षपर्वत है । यह पचास हजार योजन में फ़ैला हुआ तथा इतना ही ऊंचा है । यह मण्डलाकार है इस पुष्कर दीप को स्वादिष्ट जलवाला समुद्र चारों ओर से घेरकर स्थित है । उस समुद्र के सामने उससे दुगना जनजीवन से रहित । स्वर्णमयी जमीन वाली जगत की स्थित दिखाई देती है । यहां पर दस हजार योजन ( एक योजन बराबर बारह किलोमीटर ) में फ़ैला हुआ लोकालोक पर्वत है । जो अन्धकार से भरा हुआ है । यह अन्धकार भी अण्डकटाह से घिरा है ।
इस भूमि की ऊंचाई सत्तर हजार योजन है । इसमें दस दस हजार योजन की दूरी पर एक एक पाताल लोक स्थित है । जिन्हें अतल । वितल । नितल । गभिस्तान । महातल । सुतल । तथा पाताल कहते हैं । इन पाताल लोकों की भूमि । काली । सफ़ेद । लाल । पीला । शक्कर के समान । शैलमयी और स्वर्णमयी है । यहां पर दैत्य तथा नाग निवास करते हैं ।
अब दारुण पुष्कर दीप में जो नरक हैं । उनके नाम । रौरव । सूकर । रोध । ताल । विशसन । महाज्वाल । तप्तकुम्भ । लवण । विमोहित । रुधिर । वैतरणी । कृमिश । कृमिभोजन । असिपत्रवन । कृष्ण । नानाभक्ष
या लालाभक्ष । दारुण । पूयवह । पाप । वह्यिज्वाल । अधःशिरा । संदंश । कृष्णसूत्र । तमस । अवीचि । श्वभोजन । अप्रतिष्ठ । उष्णवीचि हैं । इनके ऊपर क्रमानुसार अन्य लोकों की स्थिति है । इन लोकों को जल । अग्नि । वायु । आकाश । घेरे हुये है । इस प्रकार अवस्थित ब्रह्माण्ड प्रधान तत्व से आवेष्टित है । वह ब्रह्माण्ड अन्य ब्रह्माण्ड की अपेक्षा दस गुना अधिक है ।
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