बुधवार, जून 30, 2010

नारी बनाम द्रोपदी




आज से बाईस साल पहले मेरे पङोस की लङकी को उसके ससुराल वालों ने जलाकर मार दिया था । हालांकि मुझे कविता आती नहीं थी पर उस वक्त जाने कैसे स्वतः ही बन गयी । इस लङकी का जीवन वास्तव में ऐसा ही था । आज उसको याद करते हुये श्रद्धांजलि देने की कोशिश कर रहा हूँ उसका नाम रागिनी था ।


तब भी असहाय थी ।अब भी असहाय है ।
द्रोपदी ?
जीत कर लाई गयी ।अस्तित्व के हिस्से कर ।
वस्तु सी बाँटी गयी ।पर उफ़ न कर पाई ।
द्रोपदी ।
यधपि !
पतियों की संख्या पाँच थी । कुल की ऊँची नाक थी ।
लेकिन एक दाव की खातिर । अपनों के बीच में ।
तब लजाई द्रोपदी ।
बहुत रोई । चीखी चिल्लाई ।
पर कुछ न कर पाई ।
द्रोपदी ।
छोङ दें हम और किस्से ।
द्रोपदी के दुखों के भटकने के ।
ये दो उदाहरण काफ़ी हैं ।
आज की द्रोपदी की स्थिति समझने को ।
आज फ़िर पढी खबर ।
एक और दुर्योधन ने ।
हबस का शिकार बनाई द्रोपदी ।
( आज के परिवेश में । जन्म )
औरों की छोङो । खुद माँ ने बेदर्दी से ठुकराई ।
जन्म से पहले ही गर्भ से गिराई । द्रोपदी ।
( घर में )
भाई बहन में फ़र्क बहुत था ।
माँ की ममता में । खाने में पीने में ।
स्कूल में पढाने में । भाई को महत्व था ।
ऐसी उपेक्षा से कुंठाई । हीनता से घिर आई ।
अपनों में हुयी पराई ।पर बोल न पाई द्रोपदी ।
( शादी )
शास्त्रों में । विद्वानों ने । घर की लक्ष्मी बताई द्रोपदी ।
पर धन के बिना सबने । हर बार ठुकराई द्रोपदी ।
तब ?
अरमानों की चिता जला के ।
यहाँ वहाँ । जाने कहाँ । बेमन से व्याही द्रोपदी ।
( शादी के बाद )
जुल्म सहे । ताने सहे ।
यातनाओं से थरथराई द्रोपदी ।
सोना चाँदी । भेंस नकदी । तू क्यों न लाई द्रोपदी ।
ला दहेज । ला दहेज । देता चहुँ ओर सुनाई ।
बहुत आती थी । रुलाई । पर रो ना पाई द्रोपदी ।
( फ़िर क्या हुआ )
हर रोज मारा खूब पिटी ।( पर ) दहेज दानवों की न भूख मिटी ।
बहुत रोई । गिङगिङाई ।
पिता गरीब है उसका । बात उसने सबको बताई ।
हाथ जोङती बार बार देती दुहाई । द्रोपदी ।
( और अंत में -- )
नाउम्मीद हुये आतताई । तब जलाई द्रोपदी ।
हा बापू । हा मैया । हा भैया ।
जलते हुये चिल्लाई द्रोपदी ।
( उपसंहार )
अच्छा हुआ तू मर गयी । इस जीवन से तू तर गयी ।
अब मत आना । कभी तू यहाँ ।
इंसानों के रूप में दरिन्दे बसते जहाँ ।
हाय क्या भाग पाये तूने । आयी बन अभागी । द्रोपदी ।
( ये दमनचक्र ? )
युगों पहले भी थी । यही कहानी तेरी ।
युगों बाद भी है । यही कहानी तेरी ।
कालचक्र में हर नारी । बार बार तेरी दास्तां दोहराये । द्रोपदी ।
( रागिनी को श्रद्धांजलि )

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