बुधवार, जून 30, 2010

द्रोपदी फ़िर तेरी कहानी याद आई





( एक )

कल फ़िर एक बधू दहेज दानवों ने जलाई ।
द्रोपदी फ़िर तेरी कहानी याद आई ।
तेरे युग से ही अनुत्तरित ये प्रश्न है ।
नारी के वजूद पर सवालिया चिह्न है ।
प्रतियोगिता में जीत कर । कैसे ।
पाँच पुरुषों में बाँटा तुझे ।
समझना कठिन है ?
दाव पे लगाया तुझे ।
अपनों के बीच में ।
निर्वस्त्र कर अपनों ने लजाया तुझे ।
नारी की गरिमा का ।ये सबसे बङा हनन है ।
वीरों की सभा में ।
वीरों ने अपमानित कर घुमाया तुझे ।
वे वीर थे या नपुंसक । फ़ैसला कठिन है ।
द्रोपदी इस तरह तू तिल तिल कर मरती रही ।
युग बदला । दुनियाँ बदली ।
पर द्रोपदी जलती रही ।
द्रोपदी तेरा जीवन दुखों में ही बीत गया ।
सतयुग त्रेता द्वापर कलियुग
नारी ने तुझको ही जिया ।

( दो )

आज भी तेरी तरह द्रोपदी ।
नारी बेबस है लाचार है ।
बनती हबस का शिकार ।
पङती दहेज की मार है ।
भाँति भाँति के अनाचार अत्याचार ।
सोचने की बात है ।
तुझसे जगत व्यवहार है ।
आज भी जुए के दाव पर नारी लगाई जाती है ।
बिकती है । बाजारों में बोली लगाई जाती है ।
माँ की ममता में भी पक्षपात ।
भैया जाता है स्कूल ।
बहन घर पर बिठाई जाती है ।
लङकी से करना क्या लगाव ।
लङकी परायी कहाती है ।
और शायद इसीलिये ?
लङका खाता है दूध मलाई ।
लङकी रोटी से भूख मिटाती है ।
कूङा समझ कर । बोझ मान कर ।
घर से हटायी जाती है ।
जो भी मिले । जैसा भी मिले ।
उसको ब्याही जाती है ।
लेकिन ?
फ़िर भी किस्मत नहीं बदलती ।
बिना दहेज के । कम दहेज के ब्याही लङकी ।
निश्चित ही ।
हर बार जलायी जाती है ।

( तीन )

इसलिये ।
उठ खङी हो जा । कर विद्रोह ।
हैवानों से आशा छोङ दे ।
बाँधे तुझको जो बन्धन में ।
वे सारी जंजीरे तोङ दे ।
पङ लिख कर ऊँची उठ । ऐसा मुकाम बना ।
दहेज दानव । बलात्कारी काँपे तुझसे ।
लक्ष्मीबाई सी पहचान बना ।
लाचारी मजबूरी हटा दे ।
क्या तेरे हक है ।
आज दुनियाँ को बता दे ।
उठ खङी हो जा ।
यह पहल तुझे करनी होगी ।
नारी को नारी की भाग्य विधाता बन ।
नारी की किस्मत बदलनी होगी ।

नारी बनाम द्रोपदी




आज से बाईस साल पहले मेरे पङोस की लङकी को उसके ससुराल वालों ने जलाकर मार दिया था । हालांकि मुझे कविता आती नहीं थी पर उस वक्त जाने कैसे स्वतः ही बन गयी । इस लङकी का जीवन वास्तव में ऐसा ही था । आज उसको याद करते हुये श्रद्धांजलि देने की कोशिश कर रहा हूँ उसका नाम रागिनी था ।


तब भी असहाय थी ।अब भी असहाय है ।
द्रोपदी ?
जीत कर लाई गयी ।अस्तित्व के हिस्से कर ।
वस्तु सी बाँटी गयी ।पर उफ़ न कर पाई ।
द्रोपदी ।
यधपि !
पतियों की संख्या पाँच थी । कुल की ऊँची नाक थी ।
लेकिन एक दाव की खातिर । अपनों के बीच में ।
तब लजाई द्रोपदी ।
बहुत रोई । चीखी चिल्लाई ।
पर कुछ न कर पाई ।
द्रोपदी ।
छोङ दें हम और किस्से ।
द्रोपदी के दुखों के भटकने के ।
ये दो उदाहरण काफ़ी हैं ।
आज की द्रोपदी की स्थिति समझने को ।
आज फ़िर पढी खबर ।
एक और दुर्योधन ने ।
हबस का शिकार बनाई द्रोपदी ।
( आज के परिवेश में । जन्म )
औरों की छोङो । खुद माँ ने बेदर्दी से ठुकराई ।
जन्म से पहले ही गर्भ से गिराई । द्रोपदी ।
( घर में )
भाई बहन में फ़र्क बहुत था ।
माँ की ममता में । खाने में पीने में ।
स्कूल में पढाने में । भाई को महत्व था ।
ऐसी उपेक्षा से कुंठाई । हीनता से घिर आई ।
अपनों में हुयी पराई ।पर बोल न पाई द्रोपदी ।
( शादी )
शास्त्रों में । विद्वानों ने । घर की लक्ष्मी बताई द्रोपदी ।
पर धन के बिना सबने । हर बार ठुकराई द्रोपदी ।
तब ?
अरमानों की चिता जला के ।
यहाँ वहाँ । जाने कहाँ । बेमन से व्याही द्रोपदी ।
( शादी के बाद )
जुल्म सहे । ताने सहे ।
यातनाओं से थरथराई द्रोपदी ।
सोना चाँदी । भेंस नकदी । तू क्यों न लाई द्रोपदी ।
ला दहेज । ला दहेज । देता चहुँ ओर सुनाई ।
बहुत आती थी । रुलाई । पर रो ना पाई द्रोपदी ।
( फ़िर क्या हुआ )
हर रोज मारा खूब पिटी ।( पर ) दहेज दानवों की न भूख मिटी ।
बहुत रोई । गिङगिङाई ।
पिता गरीब है उसका । बात उसने सबको बताई ।
हाथ जोङती बार बार देती दुहाई । द्रोपदी ।
( और अंत में -- )
नाउम्मीद हुये आतताई । तब जलाई द्रोपदी ।
हा बापू । हा मैया । हा भैया ।
जलते हुये चिल्लाई द्रोपदी ।
( उपसंहार )
अच्छा हुआ तू मर गयी । इस जीवन से तू तर गयी ।
अब मत आना । कभी तू यहाँ ।
इंसानों के रूप में दरिन्दे बसते जहाँ ।
हाय क्या भाग पाये तूने । आयी बन अभागी । द्रोपदी ।
( ये दमनचक्र ? )
युगों पहले भी थी । यही कहानी तेरी ।
युगों बाद भी है । यही कहानी तेरी ।
कालचक्र में हर नारी । बार बार तेरी दास्तां दोहराये । द्रोपदी ।
( रागिनी को श्रद्धांजलि )

बुधवार, जून 16, 2010

प्रलय का काउंटडाउन शुरू




भारत में तो मैंने इतना नहीं देखा । पर 2012 को लेकर अमेरिका आदि कुछ विकसित देशों मे हल्ला मचा हुआ है । हाल ही में हुये मेरे एक परिचित स्नेहीजन त्रयम्बक उपाध्याय साफ़्टवेयर इंजीनियर ने अमेरिका ( से ) में 2012 को लेकर मची खलबली के बारे में बताया ।
इस तरह की बातों में मेरा नजरिया थोङा अलग रहता है । मेरे द्रष्टिकोण के हिसाब से यह पोस्ट भ्रामक थी । लिहाजा इस ज्वलन्त मुद्दे को लेकर मेरे पास जब अधिक फ़ोन आने लगे ।तो मैंने वह पोस्ट ही हटा दी । पहले तो मेरे अनुसार यह उस तरह सच नहीं है । जैसा कि लोग या विनोद जी कह रहे हैं । दूसरे यदि इसमें कुछ सच्चाई है भी तो " डाक्टर भी मरणासन्न मरीज से ये कभी नहीं कहता कि तुम कुछ ही देर ( या दिनों ) के मेहमान हो " यदि हमारे पास किसी चीज का उपाय नहीं है । तो " कल " की चिन्ता में " आज "को क्यों खराब करें । यदि प्रलय होगी भी । तो होगी ही ।
उसको कौन रोक सकता है । जब हम " लैला " सुनामी " हैती " के आगे हाथ जोङ देते है । तो प्रलय तो बहुत बङी " चीज " है । लेकिन तीन दिन पहले जब मैं इस इंद्रजाल ( अंतर्जाल ) internet पर घूम रहा था तो किसी passions साइट पर मैंने लगभग 40 साइट इसी विषय पर देखी । जिनमें " एलियन " द्वारा तीसरे विश्व युद्ध द्वारा आतंकवाद , प्राकृतिक आपदा ..आदि किसके द्वारा " प्रथ्वी " का अंत होगा । ऐसे प्रश्न सुझाव आदि थे । जो लोग मेरे बारे में जानते हैं और जिन्हें लगता है कि मैं " इस प्रश्न " का कोई संतुष्टि पूर्ण उत्तर दे सकता हूँ । ऐसे विभिन्न स्थानों से लगभग 90
फ़ोन काल मेरे पास आये । और मैंने उनका गोलमाल..टालमटोल..उत्तर दिया । इसकी वजह वे लोग बेहतर ढंग से समझ सकते हैं । जो किसी भी प्रकार की कुन्डलिनी या अलौकिक साधना में लगे हुये हैं । मान लीजिये कि किसी साधक ने इस प्रकार की साधना कर ली हो कि वह भविष्य के बारे में बता सके । और वह पहले से ही सबको सचेत करने लगे । तो ये साधना का दुरुपयोग और ईश्वरीय नियमों का उलंघन होगा । परिणामस्वरूप वह ग्यान साधक से अलौकिक शक्तियों द्वारा छीन लिया जायेगा । क्योंकि ये सीधा सीधा ईश्वरीय विधान और प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप होगा ।
हाँ इस या इन आपदाओं से बचने के उपाय अवश्य है । और वे किसी को भी सहर्ष बताये जा सकते हैं । पर यदि कोई माने तो ? क्योंकि जगत एक अग्यात नशे में चूर है । " झूठे सुख से सुखी हैं , मानत है मन मोद । जगत चबेना काल का कछू मुख में कछु गोद । " जीव वैसे ही काल के गाल में है । उसकी कौन सी उसे परवाह है । तो खबर नहीं पल की और बात करे कल की । वाला रवैया चारों तरफ़ नजर आता है । खैर..जगत व्यवहार और विचार से साधुओं को अधिक मतलब नहीं होता । फ़िर भी एक अति आग्रह रूपी दबाब में जब बार बार ये प्रश्न मुझसे किया गया । तो मुझे संकेत में इसका जबाब देना पङा ।
ये जबाब मैंने " श्री महाराज जी " और कुछ गुप्त संतो से प्राप्त किया था । अलौकिकता के " ग्यान काण्ड " और " बिग्यान काण्ड " में जिन साधुओं या साधकों की पहुँच होती है । वे इस चीज को देख सकते हैं । 2012 में प्रलय की वास्तविकता क्या है । आइये इसको जानें ।
" संवत 2000 के ऊपर ऐसा योग परे । के अति वर्षा के अति सूखा प्रजा बहुत मरे ।
अकाल मृत्यु व्यापे जग माहीं । हाहाकार नित काल करे । अकाल मृत्यु से वही बचेगा ।
जो नित " हँस " का ध्यान धरे । पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण । चहुँ दिस काल फ़िरे ।
ये हरि की लीला टारे नाहिं टरे ।
अब क्योंकि संवत 2000 चल ही रहा है । इसलिये प्रलय ( मगर आंशिक ) का काउंटडाउन शुरू हो चुका है । मैंने किसी पोस्ट में लिखा है कि गंगा यमुना कुछ ही सालों की मेहमान और है । 2010 to 2020 के बाद जो लोग इस प्रथ्वी पर रहने के " अधिकारी " होंगे । वो प्रकृति और प्रथ्वी को एक नये श्रंगार में देखने वाले गिने चुने भाग्यशाली लोग होंगे । और ये घटना डेढ साल बाद यानी 2012 में एकदम नहीं होने जा रही । बल्कि इसका असली प्रभाव 2014 to 2015 में देखने को मिलेगा । इस प्रथ्वी पर रहने का " हक " किसका है । ये रिजल्ट सन 2020 में घोषित किया जायेगा । यानी आपने सलामत 2020 को happy new year किया । तो आप 65 % का विनाश करने वाली इस प्रलय से बचने वालों में से एक होंगे । ऊपर जो " संतवाणी " मैंने लिखी है । उसमें ऐसी कोई कठिन बात नहीं है । जिसका अर्थ करना आवश्यक हो । सिवाय इस एक बात " अकाल मृत्यु से वही बचेगा । जो नित " हँस " का ध्यान धरे । " के । " हँस " ग्यान या ध्यान या भक्ति वही है । जो शंकर जी , हनुमान , राम , कृष्ण , कबीर , नानक रैदास , दादू , पलटू ..आदि ने की । यही एकमात्र " सनातन भक्ति " है । इसके बारे में मेरे सभी " ब्लाग्स " में बेहद विस्तार से लिखा है । अतः नये reader और जिग्यासु उसको आराम से देख सकते हैं । और कोई उलझन होने पर मुझे फ़ोन या ई मेल कर सकते हैं ।
लेकिन अभी भी बहुत से प्रश्न बाकी है । ऊपर का दोहा कोई विशेष संकेत नहीं कर रहा । ये सब तो अक्सर प्रथ्वी पर लगभग होता ही रहा है । तो खास क्या होगा और क्यों होगा ? ये अब भी एक बङा प्रश्न था । तो आप लोगों के अति आग्रह और दबाब पर मैंने " श्री महाराज जी " से विनम्रता पूर्वक निवेदन किया । और उत्तर में जो कुछ मेरी मोटी बुद्धि में फ़िट हुआ । वो आपको बता रहा हूँ । बाढ , सूखा , बीमारी , महामारी और कुछ प्राकृतिक आपदायें रौद्र रूप दिखलायेंगी । और जनमानस का झाङू लगाने के स्टायल में सफ़ाया करेंगी । लेकिन...? इससे भी प्रलय जैसा दृष्य नजर नहीं आयेगा ।
प्रलय लायेगा धुँआ..धुँआ..हाहाकारी...विनाशकारी..धुँआ..चारों दिशाओं से उठता हुआ घनघोर काला गाढा धुँआ..। और ये धुँआ मानवीय अत्याचारों से क्रुद्ध देवी प्रथ्वी के गर्भ से लगभग जहरीली गैस के रूप में बाहर आयेगा । यही नहीं प्रथ्वी के गर्भ में होने वाली ये विनाशकारी हलचल तमाम देशों को लीलकर उनका नामोंनिशान मिटा देगी । प्रथ्वी पर संचित तमाम तेल भंडार इसमें कोढ में खाज का काम करेंगे । और 9 / 11 को जैसा एक छोटा ट्रेलर हमने देखा था । वो जगह जगह नजर आयेगा । प्रथ्वी में आंतरिक विस्फ़ोटों से विकसित देशों की बहुमंजिला इमारते तिनकों की तरह ढह जायेगी । हाहाकार के साथ त्राहि त्राहि का दृष्य होगा । समुद्र में बनने वाले भवन और अन्य महत्वाकांक्षी परियोजनायें इस भयंकर जलजले में मानों " बरमूडा ट्रायएंगल " में जाकर गायब हो जायेगीं । nasa के सभी राकेट बिना लांच किये । विना तेल लिये । बिना बटन दबाये " अंतरिक्ष " में उङ जायेंगे । और वापस नहीं आयेंगे । और बेहद हैरत की बात ये है । कि इस विनाशकारी मंजर को देखने वाले भी होंगे । और इस से बच जाने वाले भी लाखों (हाँलाकि कुछ ही ) की तादाद में होंगे । और प्रथ्वी की आगे की व्यवस्था भी उन्हीं के हाथों होगी । इस भयानक महालीला के बाद प्रथ्वी के वायुमंडल में सुखदायी परिवर्तन होंगे । और आश्चर्य इस बात का कि जिन घटकों से ये तबाही आयेगी । वे ही घटक प्रथ्वी से बाहर आकर तबाही का खेल खेलने के बाद परिवर्तित होकर नये सृजन की रूप रेखा तैयार करेंगे ।
अब अंतिम सवाल । ये सब आखिर क्यों होगा ?
तो इसका उत्तर है । डिसबैलेंस । यानी प्राकृतिक संतुलन का बिगङ जाना । ये बैलेंस बिगङा कैसे ? इसका आध्यात्मिक उत्तर और कारण बेहद अलग है । वो मैं न समझा पाऊँगा । और न आप इतनी आसानी से समझ पायेंगे । सबसे बङा जो मुख्य कारण है । वो है कई पशु पक्षियों की प्रजाति का लुप्त हो जाना । मनुष्य का अधिकाधिक प्राकृतिक स्रोतों का दोहन । और मनुष्य के द्वारा अपनी सीमा छोङकर प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप करना आदि ..? अब एक आखिरी बात..पशु पक्षियों के लुप्त होने से प्रलय का क्या सम्बन्ध ?
जो लोग अमेरिका आदि देशो के बारे में जानकारी रखते हैं । उन्हें एक बात पता होगी । कि एक बार जहरीले सांपो के काटने से आदमियों की मृत्यु हो जाने पर वहाँ सामूहिक रूप से सांपो की हत्या कर दी गयी । ताकि " आदमी " निर्विघ्न रूप से रात दिन विचरण कर सके । और कुछ स्थान एकदम सर्पहीन हो गये...कुछ ही समय बाद । वहाँ एक अग्यात रहस्यमय बीमारी फ़ैलने लगी । तब बेग्यानिकों को ये बात पता चली कि सर्प हमारे आसपास के वातावरण से जहरीले तत्वों को खींच लेते है । और वातावरणस्वच्छ रहता है । सर्प हीनता की स्थिति में वह विष वातावरण में ही रहा । और जनता उस अदृष्य विष की चपेट में आ गयी । ये सिर्फ़ एक घटित उदाहरण भर था । आज प्रथ्वी के वायुमंडल और वातावरण से जरूरत की तमाम चीजें गायब हो चुकी हैं ? 

आपका स्वागत है

मेरी फ़ोटो
सहज सरस मधुर मनोहर भावपूर्ण कथा कार्यक्रम हेतु सम्पर्क करें। ------------- बालसाध्वी सुश्री अरुणा देवी (देवीजी) (सरस कथावाचक, भागवताचार्य) आश्रम श्रीधाम, वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) भारत सम्पर्क न. - 78953 91377 -------------------- Baalsadhvi Sushri Aruna Devi (Devi ji) (Saras Kathavachak, Bhagvatacharya) Aashram Shridham vrindavan (u. p) India Contact no - 78953 91377