गुरुवार, अप्रैल 29, 2010

राम की माया कहीं धूप कहीं छाया

अभी तुम राम हो..प्रमाण.. ऐसे घट घट राम हैं दुनिया देखे नाहिं आगे बढने से पहले र को जानें..र ही वह अक्षर है जिसकी आगे पीछे
ऊपर नीचे दांये बांये या चारों तरफ़ गति है इसके अतिरिक्त किसी अक्षर में ये सामर्थ्य नहीं है..उदाहरण..मर्यादा..क्रपा..कृति..आदि..र वास्तव में चेतन शक्ति को हाईपावर लाइन से जन उपयोग के लिये ट्रांसफ़ोर्मर द्वारा
परवर्तित करता है संत वाणी में इसे ररंकार कहते है . बिन्दी . भी इसी तरह आती है पर यह जीव भाव है इसकी अपनी सत्ता नहीं
है ये पूरी तरह अन्य पर आश्रित है र ही करेंट या चेतन का कार्य करता है ये इस तरह हो रहा है र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र इसको जान लेने से अद्रश्य प्रकृति की हलचल दिखने लगती है और ध्यान रखें यदि विधि मालूम हो तो इसको जाना
जा सकता है .प्रकृति जङ है ये र्र्र्र्र्र्र के सहयोग से म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म इस तरह अद्रश्य में कार्य कर रही है .अब अगर इन दोनों के मध्य में अ अ अ य़ह अद्रश्य परदा न होता तो जानते हैं ये संसार किस तरह का दिखता...आप कहेगें नहीं जानते..जबकि हकीकत ये है कि निपट अनाङी कम पढे लिखे यहाँ तक कि छोटे बालकों ने भी वह द्रश्य देखा होगा...मैं बताता हूँ सिनेमा हाल में आपने प्रोजेक्टर रूम से आता हुआ फ़ोकस देखा होगा वैसा..इंसान की जिन्दगी या ये लीला ठीक इसी तरह कार्य कर रही है..र..प्रोजेक्ट रूम में रील पर प्रकाश डालने वाला वल्व म ..रील मानी हुयी ..अब मान लो सामने परदा न हो तो केवल फ़ैलता हुआ फ़ोकस ही नजर आयेगा इसी तरह र रूपी चेतन के सहयोग म रूपी माया द्वारा अ रूपी परदे (यानी प्रथ्वी .आकाश.जीव जन्तु आदि सब कुछ ) पर यह हलचल दिखायी दे रही है...इस तरह राम बना..पर वास्तव में सत्य इससे कहीं बहुत आगे है ..जब ब्रह्मा विष्णु महेश छोटे बालक थे और उन्होने अपनी माँ देवी महामाया(जो सतपुरुष का अंश थी और बाद में निरंजन की पत्नी हुयी और राम की पत्नी सीता के रूप में अवतार लिया तथा निरंजन ने राम के रूप में अवतार लिया ) से अपने पिता को देखने की जिद की जो अद्रश्य रहता था..तब प्रथम बार दोनों ने मिलकर राम की रचना की........
इससे ज्यादा बताना सामान्य जन के लिये हानिकारक है पर जो विशेष रुचि रखते हो वो कबीर धर्मदास संवाद पर आधारित पुस्तक" अनुराग सागर" पङ सकते हैं जो प्राय सरलता से कई प्रकाशनों से प्रकाशित है और लगभग हर
जगह उपलब्ध है .अगर ये पुस्तक मिलने में कठिनाई हो तो आप श्री वन्दना बुक डिपो .चौक गुङहाई बाजार मथुरा
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सहायता कर सकता हूँ
राम=र+अ+म...र.चेतन गति अ..परदा जो अदृश्य है म..माना हुआ या माया तुम में ही वह चेतन है..चेतन माया और शाश्वत सत्य पर अहम का मैं रूप मिथ्या आवरण ऐसे राम बना..नाना भांति राम अवतारा..राम जनम के हेत
अनेका अति विचित्र एक ते एका .
ऊँ ये शरीर है ..मन..जिसको हम मन समझते हैं ये दरअसल अंतकरण नामक उपकरण का चौथा पार्ट है . अंतकरण में मन बुद्धि चित्त अहम...ये चार प्रकाशक छिद्र है जो सुरति को संसार ग्यान कराने और विभिन्न लीलायें दिखाने का कार्य कर रहे है . सुरति शब्द साधना में इन चारों छिद्रों को विधि विशेष द्वारा एक करके इनका रुख संसार से विपरीत ब्रह्माण्ड की ओर कर दिया जाता है औरसाधक सूक्ष्म लोकों का भ्रमण अथवा अपनी सामर्थ्य और साधना अनुसार उन्हें देखने लगता है .
वास्तव में मेरे महाराज जी ऐसी बातों को बताने के लिये मना करते हैं फ़िर भी मैं थोङा अंश बता ही देता हूँ वास्तव में आत्मा का रहस्य गूढ है इसको प्रकट करने की प्रभु आग्या नहीं है...यह सीना ब सीना यानी पात्र होने पर
सावधानी से विधान से दिया जाने वाला ग्यान है...लेकिन ज्यादा खुश होने की आवश्यकता नहीं बिना अच्छे गुरु के ये लेख उलझाऊ और रहस्यमय शब्दों के जाल के जैसा ही है . इससे आप कुछ प्राप्त नहीं कर सकते..पर
"अनुराग सागर" पढकर आप निश्चित चौंक जायेंगे ये मेरा दावा है .

4 टिप्‍पणियां:

Rector Kathuria ने कहा…

हिंदी ब्लाग जगत की इस सरस दुनिया में आपका स्वागत है...हर तरह के दबाव से मुक्त यह स्वतंत्र पर्यावरण आपकी कलम और आपकी सोच को पूरा पूरा मौका देगा कि यह लगातार ऊंचे से ऊंचे उड़ सकें....अन्य ब्लागों और उनके कलमकारों के साथ आपके मित्रता पूर्ण संबंध इसे और बल प्रदान करेंगे....सो अधिक से अधिक ब्लागों के अध्यन को अपनी अन्य अच्छी आदतों में शामिल करें और पढ़ी हुयी रचनायों पर टिप्पणी करना न भूलें..

राजीव जी राम के बारे में आपकी खोज नि:संदेह बहुत से लोगों कि जानकारी में वृद्धी करेगी और साधना की ओर उत्सुक भी करेगी.....साधना मार्ग पर चल तो वही पायेगा जिस पर हरि की इच्छा होगी....

Dimple Maheshwari ने कहा…

जय श्री कृष्ण ...आप हिंदी में लिखते हैं। अच्छा लगता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं | हमारे ब्लॉग पर आपके विचारों का स्वागत हैं|

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
mukta mandla ने कहा…

मेरा ब्लागिंग उद्देश्य गूढ रहस्यों को
आपस में बांटना और ग्यानीजनों से
प्राप्त करना भी है..इसलिये ये आवश्यक नहीं
कि आप पोस्ट के बारे में ही कमेंट करे कोई
दुर्लभ ग्यान या रोचक जानकारी आप सहर्ष
टिप्पणी रूप में पोस्ट कर सकते हैं ..आप सब का हार्दिक
धन्यवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com

आपका स्वागत है

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सहज सरस मधुर मनोहर भावपूर्ण कथा कार्यक्रम हेतु सम्पर्क करें। ------------- बालसाध्वी सुश्री अरुणा देवी (देवीजी) (सरस कथावाचक, भागवताचार्य) आश्रम श्रीधाम, वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) भारत सम्पर्क न. - 78953 91377 -------------------- Baalsadhvi Sushri Aruna Devi (Devi ji) (Saras Kathavachak, Bhagvatacharya) Aashram Shridham vrindavan (u. p) India Contact no - 78953 91377