शनिवार, सितंबर 18, 2010

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शंकराचार्य परकाय प्रवेश विध्या के निष्णात साधक थे । जब मंडन मिश्र और शंकराचार्य का शास्त्रार्थ हुआ तो ये तय हुआ । कि इनमें से जो हारेगा । वो दूसरे का शिष्य बन जायेगा । मण्डन मिश्र भारत के विख्यात विद्धान और ग्रहस्थ थे । उनकी पत्नी सरस्वती भी अत्यन्त विद्धान थी । शंकराचार्य संन्यासी थे । और उन्होंने शास्त्रार्थ के माध्यम से भारत विजय करने के उद्देश्य से अनेक यात्रायें की थी । मगर वे सर्वश्रेष्ठ तभी माने जा सकते थे । जब वे महाविद्वान मण्डन मिश्र को पराजित करते । इन दोनों के शास्त्रार्थ का निर्णय कौन करता ? क्योंकि कोई सामान्य विद्वान तो इसका निर्णय नही कर सकता था । अतः शंकराचार्य के अनुरोध पर निर्णय के लिये मिश्र की पत्नी सरस्वती का ही चयन किया गया ।
यह शास्त्रार्थ इक्कीस दिन चला और आखिरकार मण्डन मिश्र हार गये । यह देखकर सरस्वती ने निर्णय दिया कि मिश्र जी हार गये हैं । अतः वे शंकराचार्य का शिष्यत्व स्वीकार करें और संन्यास दीक्षा लें । यह कहकर वह विद्वान पत्नी निर्णायक पद से नीचे उतरी और शंकराचार्य से कहा । मैं मण्डन मिश्र की अर्धांगिनी हूं । अतः अभी तक मिश्र जी की आधी ही पराजय हुयी है । जब आप मुझे भी पराजित कर देंगे तब मिश्र जी की पूरी पराजय मानी जायेगी । यह बात एकदम सही थी । अबकी बार मण्डन मिश्र निर्णायक बने । सरस्वती तथा शंकराचार्य में शास्त्रार्थ होने लगा । इक्कीसवें दिन जब सरस्वती को लगा कि अब उसकी पराजय होने ही वाली है । तब उसने शंकराचार्य से कहा । अब मैं आपसे अंतिम प्रश्न पूछती हूं । और इस प्रश्न का भी उत्तर यदि आपने दे दिया । तो हम अपने आपको पराजित मान लेंगे । और आपका शिष्यत्व स्वीकार कर लेंगे । शंकराचार्य के हां कर देने पर सरस्वती ने कहा । सम्भोग क्या है ? यह कैसे किया जाता है । और इससे संतान का निर्माण किस प्रकार हो जाता है । यह सुनते ही शंकराचार्य प्रश्न का मतलब और उसकी गहरायी समझ गये । यदि वे इसी हालत में और इसी शरीर से सरस्वती के प्रश्न का उत्तर देते हैं तो उनका संन्यास धर्म खन्डित होता है । क्योंकि संन्यासी को बाल बृह्मचारी को संभोग का ग्यान होना असम्भव ही है ।
अतः संन्यास धर्म की रक्षा करने के लिये उत्तर देना सम्भव ही नहीं था । और बिना उत्तर दिये । हार तय थी । लिहाजा दोनों ही तरफ़ से नुकसान था । कुछ देर विचार करते हुये शंकराचार्य ने कहा । क्या इस प्रश्न का उत्तर अध्ययन और सुने गये विवरण के आधार पर दे सकता हूं ? या इसका उत्तर तभी प्रमाणिक माना जायेगा । जबकि उत्तर देने वाला इस प्रक्रिया से व्यवहारिक रूप से गुजर चुका हो । तब सरस्वती ने उत्तर दिया । कि व्यवहारिक ग्यान ही वास्तविक ग्यान होता है । यदि आपने इसका व्यवहारिक ग्यान प्राप्त किया है । अर्थात किसी स्त्री के साथ यौनक्रिया आदि कामभोग किया है । तो आप निसंदेह उत्तर दे सकते हैं । शंकराचार्य जन्म से ही संन्यासी थे । अतः उनके जीवन में कामकला का व्यावहारिक ग्यान धर्म संन्यास धर्म के सर्वथा विपरीत था । अतः उन्होंने उस वक्त पराजय स्वीकार करते हुये कहा । कि मैं इसका उत्तर छह महीने बाद दूंगा । तब शंकराचार्य ने मंडन मिश्र की पत्नी से छ्ह माह का समय लिया । और अपने शिष्यों के पास पहुँचकर कहा कि मैं छह महीने के लिये दूसरे शरीर में प्रवेश कर रहा हूँ । तब तक मेरे शरीर की देखभाल करना । यह कहकर उन्होनें अपने सूक्ष्म शरीर को उसी समय मृत्यु को प्राप्त हुये एक राजा के शरीर में डाल दिया । मृतक राजा अनायास उठकर बैठ गया । खैर राजा के अचानक जीवित हो उठने पर सब बहुत खुश हुये । लेकिन राजा की एक रानी जो अलौकिक ग्यान के विषय में जानती थी ।
उसे कुछ ही दिनों में मरकर जीवित हुये राजा पर शक होने लगा । क्योंकि पुनर्जीवित होने के बाद राजा केवल कामवासना में ही रुचि लेता था । और तरह तरह के प्रयोग सम्भोग के दौरान करता था । रानी को इस पर कोई आपत्ति न थी । उसकी तो मौजा ही मौजा थी । पर जाने कैसे वह ताङ गई कि राजा के शरीर में जो दूसरा है वो अपना काम समाप्त करके चला जायेगा । तब ये मौजा ही मौजा खत्म न हो जाय ।इस हेतु उसने अपने विश्व्स्त सेवकों को आदेश दिया जाओ । आसपास गुफ़ा आदि में देखो कोई लाश ऐसी है । जो संभालकर रखी गयी हो । या जिसकी कोई सुरक्षा कर रहा हो । ऐसा शरीर मिलते ही नष्ट कर देना । उधर राजा के शरीर में शंकराचार्य ने जैसे ही ध्यान लगाया । उन्हें खतरे का आभास हो गया और वो उनके पहुँचने से पहले ही राजा के शरीर से निकलकर अपने शरीर में प्रविष्ट हो गये । इस तरह शंकराचार्य ने कामकला का ग्यान प्राप्त किया । इस प्रकार सम्भोग का व्यवहारिक ग्यान लेकर शंकराचार्य पुनः अपने शरीर में आ गये । इस तरह से जिस शरीर से उन्होंने संन्यास धर्म स्वीकार किया था । उसको भी खन्डित नहीं होने दिया । इसके बाद पुनः मन्डन मिश्र की पत्नी सरस्वती को उसके संभोग विषयक प्रश्न का व्यवहारिक ग्यान से उत्तर देकर उन पर विजय प्राप्त की । और उन दोनों पति पत्नी को अपनी शिष्यता प्रदान की । और अपने आपको भारत का शास्त्रार्थ विजेता सिद्ध किया ।

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